मुंबई जिसे भारत का पश्चिम द्वार, भारत की आर्थिक राजधानी, सात टापुओं का नगर, सितारों की नगरी, सपनो का शहर, एक ऐसा शहर जहाँ रात नहीं होती आदि कई नामों से पुकारा जाता है, न केवल भारत का सर्वाधिक जनसँख्या वाला शहर है बल्कि यह दुनिया के सर्वाधिक जनसँख्या वाले शहरों में दूसरा स्थान रखता है और अनुमान है 2020 तक यह विश्व का सबसे अधिक जनसँख्या वाला शहर बन जाएगा। यह नगर वास्तव में भारत के समृद्धत्तम नगरों में से एक है। भारत के सबसे अमीर लोगों का निवास स्थान यहीं है और भारत के जीडीपी का पांच प्रतिशत हिस्सा यहीं से आता है। भारत के प्रति व्यक्ति की आय के मुकाबले मुंबई के प्रति व्यक्ति की आय तिगुनी है। यह भारत के सबसे अधिक गगनचुम्बी इमारतों वाला शहर है।
मुंबई की स्थापना और इतिहास
मुंबई का इतिहास बहुत पुराना जान पड़ता है। कांदिवली के निकट पाषाण काल के मिले अवशेष यहाँ उस युग में भी मानव बस्ती होने की गवाही देते हैं। ई पूर्व 250 में जब इसेहैपटनेसिआ कहा जाता था तब के भी यहाँ लिखित प्रमाण मिले हैं। ईशा पूर्व तीसरी शताब्दी में यहाँ सम्राट अशोक का शासन रहा फिर सातवाहन से लेकर इंडो साइथियन वेस्टर्न स्ट्रैप और फिर सिल्हारा वंश का शासन 1343 ईस्वी तक रहा। इसके बाद यह गुजरात के राजाओं के अधिकार में रहा। सं 1534 में पुर्तगालियों ने बहादुर शाह से इन द्वीपों को छीन लिया। बाद में चार्ल्स द्वितीय जिनका विवाह कैथरीन बरगेंज़ा से हुआ उन्हें यह दहेज़ के रूप में प्राप्त हुआ। चार्ल्स ने बाद में 1668 में इस द्वीप समूह को ईस्ट इंडिया कंपनी को दस पौंड सालाना पट्टे पर दे दिया। 1661 तक इसकी आबादी मात्र 10000 थी जो मात्र पंद्रह सालों में बढ़ कर साठ हज़ार हो गयी। 1687 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपना मुख्यालय सूरत से हटा कर मुंबई बना लिया और फिर यह मुंबई प्रेसीडेंसी का मुख्यालय बन गया। 1817 के बाद इस नगर का बड़े पैमाने पर विकास किया गया जिसमे एक महत्वाकांक्षी परियोजना थी सभी द्वीपों को आपस में जोड़ने की। इसके साथ ही भारत की पहली रेल लाइन से इसे ठाणे से 1853 में जोड़ा गया। अब तक यह सूती वस्त्र उद्योग का पुरे विश्व में एक महत्वपूर्ण केंद्र बन चूका था। 1869 में स्वेज नहर बन जाने के बाद यह एक महत्वपूर्ण बंदरगाह के रूप में अपना स्थान बना लिया था। इसके साथ ही इस नगर का व्यापार कई गुना बढ़ गया। आज़ादी के बाद 1960 में जब महाराष्ट्र राज्य का गठन हुआ तब इसे इस राज्य की राजधानी बनने का गौरव प्राप्त हुआ। 1970 के दशक में यहाँ उद्योगों और निर्माण में एकाएक बूम आया और यह देश के हर भाग से कुशल अकुशल श्रमिकों के रोज़गार का केंद्र बन गया। इसका परिणाम यह हुआ कि यहाँ की जनसँख्या काफी बढ़ गयी और यह भारत का सर्वाधिक जनसँख्या वाला शहर बन गया।
मुंबई की भौगोलिक स्थिति
मुंबई शहर भारत के पश्चिमी तट पर कोंकण क्षेत्र में बसा हुआ है। यह उल्हास नदी के मुहाने पर स्थित है जो अरब सागर में मिलती है। यहाँ उल्हास के अलावा कई अन्य नदियां भी हैं जैसे दहिसर, पोइसर, ओहिवड़ा, मीठी आदि। इसका अधिकांश हिस्सा समुद्र तल से थोड़ा ही ऊँचा है। उत्तरी क्षेत्र पहाड़ी है और सर्वोच्च पहाड़ी 450 मीटर ऊँची है। मुंबई शहर का कुल क्षेत्रफल 603 वर्ग किमी है।
अरब सागर के तट पर बसा होने की वजह से यहाँ ठंडी का असर बहुत कम रहता है। जनवरी फ़रवरी में हलकी ठण्ड रहती है गर्मी पड़ती है और बरसात खूब होती है। मौसम आर्द्र रहता है जिससे पसीना खूब आता है।
सात टापुओं का शहर
मुंबई को सात टापुओं का शहर भी बोला जाता है। इसकी वजह यह है कि यह मूल रूप से सात अलग अलग टापुओं पर बसा हुआ है। इन द्वीपों के नाम हैं
- बम्बई
- कोलाबा
- ओल्ड वुमन द्वीप जिसे लिटिल कोलाबा भी कहा जाता है
- माहिम
- मझगांव
- परेल
- वर्ली
पहले ये द्वीप अलग अलग थे और एक दूसरे पर नाव के सहारे जाना पड़ता था किन्तु 1884 के बाद इन द्वीपों को आपस में जोड़ने का काम शुरू हुआ। इस महत्वाकांक्षी योजना का नाम होर्न्बोय वेल्लार्ड था। यह परियोजना 1945 में जाकर पूरी हुई और इस प्रकार इस नगर का क्षेत्रफल 428 वर्ग किमी हो गया। वास्तव में यह उस जमाने की एक बहुत ही बड़ी योजना थी। इसमें पहाड़ियों को काट कर समतल बनाया गया, दलदली जमीनों को मिटटी और चट्टानों से पाटा गया, सातों द्वीपों के बीच के खाली जगह में चट्टानों और मिटटी को भरकर उन्हें आपस में जोड़ा गया।
इन द्वीपों के अलावा ग्रेटर मुंबई की रचना ट्रॉम्बे और सैलसेट द्वीपों को मिलकर की गयी है जिसमे मुख्य द्वीप हैं घारापुरी या एलीफैंटा द्वीप, मध्य ग्राउंड तटीय बैटरी, कस्तूरा रॉक, पूर्वी ग्राउंड आदि।
मुंबई नाम कैसे पड़ा
मुंबई शहर के नामकरण की कहानी बड़ी ही दिलचस्प है। कहते हैं जब पुर्तगाली लोग यहां पहली बार आये तो उस समय इसे कई नामों से पुकारा जाता था। उन्ही में से एक नाम था बोम बहिया। पुर्तगाली में बोम बढ़िया के लिए प्रयुक्त होता है और बे शब्द बहिया जिसका अर्थ खाड़ी होता है उससे लिया गया। यह दोनों शब्द बोम और बहिया का संयुक्त रूप है जिसे सत्रहवीं शताब्दी में ब्रिटिश रूल हो जाने के बाद आधिकारिक रूप से स्वीकार किया गया और बोम बहिया बॉम्बे के नाम से जाना जाने लगा। यही शब्द आम बोलचाल में बिगड़ कर बम्बई बन गया। एक अन्य मान्यता के अनुसार इसका नाम यहाँ की एक देवी जिन्हे मुम्बा या महा अम्बा के नाम पर पड़ा है जिन्हे मुम्बा माता बोला जाता है। मराठी में माता के लिए "आई" शब्द का प्रयोग किया जाता है। यही मुम्बा माता यानि मुम्बा आई(माता) मुंबई बोला जाने लगा। अंग्रेजी नाम बॉम्बे और स्थानीय नाम मुंबई दोनों मिलाकर ही कदाचित बम्बई नाम उच्चारण की एक वजह हो सकती है।
एक दूसरा सन्दर्भ एटोमोलॉजी एंड ओनोमैटिस्टिक्स का पुर्तगाली शब्दकोष से आता है जिसमे इसे बेनमाजंबु या तेन माइयांबू जो मुम्बा देवी से निकला हुआ शब्द के निकट ले जाता है। फिर यही मोम्बाईएन बिगड़ कर मुम्बैम और फिर सोलहवीं शताब्दी में बोम्बेयेम बन कर उभरा। यही बोम्बेयेम आगे चल कर बॉम्बे या बम्बई बना। 1995 ईस्वी में जनता की मांग पर इस शहर का नाम मुंबई कर दिया गया।
मुंबई एक लघु भारत
मुंबई एक ऐसा शहर है जहाँ आपको एक ही शहर में पूरा भारत दिखाई पद जायेगा। यहाँ भारत के हर प्रान्त से, हर भाषा बोलने वाले, मजहब को मानने वाले, हर संस्कृति के लोग मिल जायेंगे। यहाँ मराठी राजभाषा है किन्तु हिंदी बहुतायत से बोली जाती है। कुछ मात्रा में अंग्रेजी भी बोली जाती है। यहाँ भाषा का एक और रूप दिखाई पड़ता है जो आम बोलचाल में प्रयुक्त होती है और वह है बम्बइया हिंदी। इसमें हिंदी व्याकरण को आधार बनाकर एक ऐसी भाषा बोली जाती है जिसमे मराठी, हिंदी, अंग्रेजी तथा कई अन्य भाषाओँ के शब्द मिलते हैं। इसमें कुछ ऐसे शब्द भी मिलते हैं जो किसी भाषा के न होकर सिर्फ इसी में बोले जाते हैं। यहाँ पर भिन्न भिन्न संस्कृतियों और धर्मों के लोग एक साथ रहते हैं और अपने सांस्कृतिक और धार्मिक उत्सवों और त्योहारों को मनाते हैं। इसी वजह से यहाँ की संस्कृति में इन सबों की छाप नज़र आती है। यहाँ उत्तर भारतीय लोगों ख़ास कर उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों की संख्या बहुत ज्यादा है। इन्हें यहाँ भइया बोला जाता है। मुंबई का वडा पाव और भेलपुरी बहुत प्रसिद्ध है।
मुंबई और धार्मिक त्यौहार
यहाँ दिवाली, होली, क्रिसमस, नवरात्रि, दशहरा, जन्माष्टमी , गणेश उत्सव, मुहर्रम आदि बड़े ही धूमधाम और उत्साह के साथ मनाये जाते हैं। यहाँ का गणेश उत्सव विश्व प्रसिद्ध है। इसमें गणेश की हर आकार की मूर्तियां जगह जगह भव्य पंडालों में रख कर बेहतरीन सजावट की जाती है। बहुत से लोग गणपति की मूर्ति अपने घरों पर स्थापित करते हैं। दस दिनों तक खूब धूमधाम रहती है फिर उसके बाद मूर्ति को विसर्जित करते हैं। इन दिनों यहाँ के लोगों का उत्साह देखते ही बनता है। यहाँ जन्माष्टमी बड़े ही अनोखे ढंग से मनाई जाती है। हर मोहल्ले से युवाओं की टोलियां जिन्हे गोविंदा बोला जाता है निकलकर जगह जगह इकठ्ठा होती हैं जहाँ बहुत ऊँचे बंधे दही हांडी को इनकी टोलियां पिरामिड बनाकर तोड़ने का प्रयास करती हैं। जीतने वाली टीम को आयोजकों की तरफ से बड़े बड़े इनाम भी मिलते हैं। इन युवाओं की टोलियों पर रास्ते भर युवतियां तथा अन्य लोग अपने अपने घरों से पानी की बौछारें फेकते हैं पानी के गुब्बारे फेकते हैं।
नौरात्रि के दौरान यहाँ का डांडिया और गरबा का दौर चलता है। गुजरती बहुल इलाकों में युवक और युवतियां हर रोज रात्रि में किसी खाली जगह पर इकठ्ठा होकर बड़े से गोल घेरे बना कर गरबा का नृत्य करते हैं। साथ ही मधुर संगीत चलता रहता है।
बॉलीवुड
मुंबई का जिक्र हो और मायानगरी का जिक्र न हो ऐसा हो नहीं सकता। मुंबई भारतीय सिनेमा की जन्मभूमि है। यहीं पर दादा साहेब फाल्के ने भारत की पहली फिल्म राजा हरिश्चंद्र बनायीं। आज के दौर में यह फिल्म निर्माण की संख्या में हॉलीवुड को टक्कर देता है। यहाँ प्रति वर्ष 150 से 200 फ़िल्में बनती हैं। हॉलीवुड की तर्ज पर इसे बॉम्बे का "ब " लगाकर बॉलीवुड बोला जाता है। मुंबई में कई स्थानों पर शूटिंग के लिए स्टूडियो बने हुए हैं। इनमे से मुख्य हैं गोरेगॉव स्थित फिल्म सिटी, फिल्मिस्तान स्टूडियो, अँधेरी स्थित फिल्मालय स्टूडियो, कमालिस्तान स्टूडियो आदि। यहाँ प्रति दिन हजारों की संख्या में युवक युवतियां अपना भाग्य आजमाने आते हैं।
मुंबई के डब्बेवाले
डब्बेवाले मुंबई की एक ख़ास पहचान हैं। इसकी शुरुवात 1890 में कुछ अंग्रेजों और पारसी लोगों को टिफ़िन पहुंचाने से हुई। उस जमाने में सुबह सुबह उठकर गृहणियों के लिए अपने पति के लिए टिफ़िन तैयार करना काफी तकलीफदेय होता था कारण उस जमाने में न तो आज की तरह गैस चूल्हे थे और न ही प्रेशर कूकर। उस जमाने में होटल भी बहुत कम और दूर दूर हुआ करते थे। उन्ही दिनों महादेव हावजी नामक एक व्यक्ति ने नूतन टिफ़िन कंपनी खोली और महज सौ ग्राहकों के साथ इसकी शुरुवात की। आज स्थिति यह है कि इसके ग्राहकों की संख्या दो लाख के आस पास है और करीब इसमें पांच हज़ार कर्मचारी काम कर रहे हैं। मुंबई में इसकी छह ऑफिस है। अभी इसके अध्यक्ष रघुनाथ मेडगे हैं जो विगत पैतीस वर्षों से इस पद पर काम कर रहे हैं।
इन डिब्बेवालों का काम इतना सटीक और समय पर होता है कि बड़ी बड़ी कंपनियां इसके मैनेजमेंट के गुर को सिखने की कोशिश करती हैं। ये डब्बेवाले अपने काम के प्रति समर्पण और दायित्व निभाने की कला में इतने पारंगत हैं कि इनकी चर्चा विदेशों में भी हो चुकी है। इन पर कई टीवी डॉक्यूमेंट्री भी बन चुकी है इतना तक कि 2013 में बॉलीवुड फिल्म लंचबॉक्स भी इन्ही डब्बेवालों से प्रेरित बताई जाती है।
डब्बेवाले सफ़ेद कुर्ते पायजामे और सर पर गाँधी टोपी, पैरों में कोल्हापुरी चप्पल पहने मुंबई के किसी कोने में दिख जायेंगे। डब्बेवाले प्रायः वारकरी समुदाय के होते हैं और ये विट्ठल भगवान् में विश्वास रखते हैं। इनका आदर्श वाक्य है अन्नपूर्णा देवो भवः।
ब्रिटेन के प्रिंस चार्ल्स जब इंडिया आये तो इनके काम से इतने प्रभावित हुए कि अपनी शादी में इनको ख़ास तौर पर बुलावा भेजा। इनके हुनर और काम की सटीकता ने इन्हे सिक्स सिग्मा रेटिंग दिला दी है जिसका अर्थ होता है छह लाख में केवल एक गलती होना। वास्तव में ये इसके काबिल भी हैं। चाहे मूसलाधार बारिश हो या गर्मी, ये अपने काम से न तो चूकते हैं और न लेट होते हैं। इनकी संस्था का रिकॉर्ड है कि पिछले डेढ़ सौ सालों में केवल एक बार हड़ताल हुई है और वह भी मुंबई में अन्ना हज़ारे के कार्यक्रम के लिए। हालाँकि उस दिन पारसी नववर्ष की छुट्टी होने से काम कुछ ख़ास प्रभावित नहीं हुआ।
मुंबई की जलापूर्ति व्यवस्था
मुंबई की जलापूर्ति व्यवस्था अन्य शहरों से एकदम अलग है। यह शहर पानी के लिए झीलों पर निर्भर है। इस शहर का अधिकांश पानी तुलसी और विहार झील से आता है। इनके अलावे कुछ अन्य महत्वपूर्ण झील हैं जिनसे मुंबई को पानी मिलता है उनके नाम हैं अपर वैतरणा, लोअर वैतरणा, तनसा, भटसा। सारा पानी पहले भांडुप स्थित एशिआ के सबसे बड़े जल शोधन संयंत्र में साफ़ होता है। इसके बाद ही इसकी सप्लाई पुरे शहर में की जाती है।
मुंबई और क्रिकेट
मुंबई ने भारतीय क्रिकेट को ऊंचाइयों पर ले जाने में काफी अहम् भूमिका निभाई है। इसने भारत को समय समय पर कई विश्व स्तरीय खिलाडी दिए हैं। अजीत वाडेकर, सुनील गावस्कर, सचिन तेंदुलकर जैसे विश्व प्रसिद्ध खिलाडी इसी मुंबई की गलियों में खेलकर बड़े हुए हैं। मुंबई की रणजी टीम ने 38 ट्रॉफी जीत कर एक ऐसा रिकॉर्ड बनाया है जो अभी तक टुटा नहीं है। यहीं पर बीसीसीआई का भी कार्यालय है। आईपीएल में मुंबई अपनी टीम मुंबई इंडियंस के नाम से उतरती है। यहाँ दो अंतराष्ट्रीय क्रिकेट के मैदान हैं वानखेड़े और ब्रेबोर्न। एक और नया स्टेडियम नवी मुंबई में भी बन कर तैयार है।
लोकल ट्रैन: मुंबई की जीवन रेखा
लोकल ट्रेनों को मुंबई की लाइफ लाइन कहा जाता है। इसके बिना मुंबई ठहर जाती है। यहाँ लोकल ट्रेनों के चार मुख्य मार्ग हैं। पश्चिम रेलवे जो दहानू रोड से चर्चगेट तक है दूसरी सेंट्रल रेलवे जो कल्याण से मुंबई सीएसटी तक है तीसरी हारबर लाइन है और चौथी लाइन नवी मुंबई से ठाणे तक है। कुल 465 किलोमीटर क्षेत्र में फैली उपनगरीय रेल में प्रति दिन 2342 ट्रेनें चलती हैं जिनमे प्रतिदिन 75 लाख से भी ज्यादा पैसेंजर यात्रा करते हैं। इन सबअर्बन रेल रॉउट में कुल 136 स्टेशन हैं। यहाँ मुख्य रूप से दो तरह की लोकल ट्रैन चलती है स्लो और फास्ट। स्लो ट्रेनें हर स्टेशन पर रूकती है जबकि फ़ास्ट ट्रेनें कुछ स्टेशन के अंतराल पर रूकती हैं। हर ट्रैन में महिलाओं, विक्रेताओं और दिव्यांगों के लिए अलग डब्बे होते हैं। इसके अलावे महिलाओं के लिए कुछ स्पेशल ट्रेनें भी चलती हैं जिन्हे महिला स्पेशल ट्रैन कहते हैं। इनमे केवल महिलाएं ही सफर करती हैं। ज्यादातर रूट पर चार समानांतर लाइनें हैं।
मुंबई भारत का प्रमुख बंदरगाह
मुंबई दुनिया के महत्वपूर्ण बंदरगाहों में से एक है। यहाँ से विश्व के अधिकांश देशों से मालवाहक जहाज आते और जाते हैं। यह भारत का सबसे बड़ा प्राकृतिक बंदरगाह है। इसे भारत का प्रवेशद्वार भी कहा जाता है। यह बंदरगाह उल्हास नदी के मुहाने पर है। इसे फ्रंट बे कहा जाता है। नवी मुंबई में एक और बंदरगाह नावशवा है। इस बंदरगाह का नाम जवाहर लाल नेहरू पोर्ट है।
मुंबई के एयरपोर्ट
मुंबई में दो प्रमुख एयरपोर्ट हैं। एक सहार एयरपोर्ट जिसे छत्रपति शिवाजी महाराज इंटरनेशनल एयरपोर्ट के नाम से जाना जाता है दूसरा डोमेस्टिक एयरपोर्ट है जो सांताक्रूज़ में है। छत्रपति शिवाजी महाराज इंटरनेशनल एयरपोर्ट भारत का दूसरा, एशिआ का 14 वां और विश्व का 29 वां व्यस्ततम हवाई अड्डा है।
एशिआ का सबसे बड़ा स्लम : धारावी
यह एशिआ का सबसे बड़ा स्लम एरिया है। इस पुरे इलाके में करीब सात लाख लोग रहते हैं। इसका क्षेत्रफल 2.1 वर्ग किलोमीटर है। यहाँ जनसँख्या का घनत्व 277136 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है जो विश्व के सर्वाधिक जनसँख्या घनत्व वाले क्षेत्रों में से एक है। इसे 1883 में ब्रिटिश सरकार के द्वारा बसाया गया था। शुरू शुरू में यहाँ फैक्टरियों में काम करने के लिए मजदूरों को लाकर बसाया गया था। यहाँ भारत के हर प्रान्त के लोग मिल जायेंगे।
मुंबई और कमाठीपुरा
इतने बड़े शहर में रेड लाइट एरिया न हो ऐसा संभव नहीं। मुंबई में भी यह करीब करीब हर तरफ मिल जायेगा। किन्तु मुंबई में स्थित कमाठीपुरा इस मामले में पुरे हिन्दुस्तान में दूसरा स्थान रखता है। यह एक बहुत ही बड़ा रेड लाइट एरिया है जहाँ करीब पांच हज़ार से भी ज्यादा वेश्याएं रहती हैं।
इस क्षेत्र का पहले लाल बाज़ार नाम था किन्तु बाद में जब यहाँ आंध्र प्रदेश के कमाठी मजदुर रहने लगे तब से इसका नाम कमाठीपुरा पड़ गया। उन्नीसवीं शताब्दी के अंत में और बीसवीं शताब्दी की शुरुवात में अंग्रेजों द्वारा यहाँ बड़ी संख्यां में यूरोप और जापान से लड़कियों को सैनिकों और रईस लोगों के लिए लाया गया था। अंग्रेजों ने इसे कम्फर्ट जोन के रूप में बसाया था। 1928 में ब्रिटिश सरकार ने यौनकर्मियों को लाइसेंस जारी किया किन्तु आज़ादी के बाद भारत सरकार ने 1950 में इसे बैन कर दिया।
इस पुरे इलाके में 16 गलियां हैं जिनमे नौ गलियों में यह कारोबार चलता है। इन नौ गलियों में करीब 200 कमरे बने हुए हैं जिनमे इन लड़कियों को रखा जाता है।
मुंबई के पर्यटन स्थल
सपनो की नगरी मुंबई अपने नायाब पर्यटन स्थलों के लिए विश्व प्रसिद्ध है। गगनचुम्बी इमारतों से लेकर सुन्दर सुन्दर समुद्री बीच लोगों को मोहित कर लेते हैं। यहाँ के पर्यटन में आधुनिकता, इतिहास और प्रकृति का अनोखा संगम मिलता है। आइए देखते हैं मुंबई के कुछ महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल :
मुंबई और गुफाएं
भारत की आधुनिकतम नगरी अपने आप में एक विशाल इतिहास भी संजोये हुए है। यहाँ कई विश्व प्रसिद्ध प्राचीन गुफा मंदिर हैं जो यहाँ की समृद्ध ऐतिहासिक सम्पदा के मूक गवाह हैं। इतिहास में रूचि रखने वाले इन गुफाओं में अवश्य ही जाना पसंद करेंगे।
कन्हेरी गुफाएं : ये गुफाएं बोरीवली स्थित संजय गाँधी नेशनल उद्यान में वहां से करीब छह किलोमीटर उत्तर में स्थित हैं। यह काफी ऊंचाई पर स्थित है और वहां जाने के लिए जंगलों से होकर जाना पड़ता है। इन गुफाओं में बौद्ध धर्म से सम्बंधित मूर्तियां उकेरी गयी हैं। कन्हेरी कृष्णागिरी पर्वत यानि काला पर्वत का ही अपभ्रंश है। ये बड़े बेसाल्ट चट्टानों को काट कर बनायीं गयी हैं। इनका निर्माण दूसरी शताब्दी में माना जाता है।
जोगेश्वरी गुफाएं : यह जोगेश्वरी स्टेशन से उत्तर पूर्व की ओर स्थित हैं। यह गुफा करीब पंद्रह सौ वर्ष पुरानी है। इन गुफाओं में मंदिर और विशाल हॉल बने हुए हैं जिनमे हनुमान और गणेश की प्रतिमाएं हैं।
एलीफैंटा केव्स : गेट वे ऑफ़ इंडिया से करीब दस किमी समुद्र में ये गुफाएं टापू पर स्थित हैं। यहाँ ब्रह्मा, विष्णु और महेश की विशाल मूर्तियां बनी हुई हैं। गुफाओं में भगवान् शंकर की कई मुद्राओं में मूर्तियां उकेरी गयी हैं। सातवीं शताब्दी के आस पास इन गुफाओं को हिन्दू शासकों के द्वारा बनवाया गया था। इन्ही में कुछ दूसरी शताब्दी की बौद्ध गुफाएं भी हैं जिनमे पानी के छोटे तालाब बने हुए हैं। ये गुफाएं यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज सूची में शामिल हैं। गेट वे ऑफ़ इंडिया से यहाँ के लिए बहुत से मोटर बोट मिलते हैं।
मुंबई के किले
इतिहास में रूचि रखने वालों के लिए मुंबई में बहुत कुछ मिलता है। इन्ही में यहाँ के किले भी मुंबई की कहानियों को अपने आप में समेटे हुए हैं। मुंबई में वर्तमान में ग्यारह किले मौजूद है जिनमे कुछ तो वक्त की मार खाकर खँडहर हो चुके हैं पर कुछ अभी भी अपना गौरवशाली वज़ूद को बनाये हुए हैं। इन किलों में फोर्ट, डोंगरी का किला, रेवह का किला, सायन का किला, माहिम का किला, मड वर्सोवा का किला प्रमुख हैं।
मुंबई फोर्ट : यह फोर्ट एरिया में स्थित है। इसे मुंबई कैसल भी कहा जाता है इस किले का निर्माण पुर्तगालियों ने कराया था जिसे बाद में अंग्रेजों ने कब्ज़ा कर गर्वमेंट हॉउस बना दिया। यह फोर्ट ऊँची ऊँची दीवारों से घिरा हुआ है जिसके अंदर रिहाइशी बस्ती बसी हुई है।
केलवा का किला : इस किले का निर्माण 16 वीं शताब्दी में पुर्तगालियों के द्वारा करवाया गया था। यह किला कला, वास्तु और प्राचीनता को अपने में समेटे हुए है।
नेहरू संग्रहालय
यह ऐतिहासिक संग्रहालय नेहरू की डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया किताब पर आधारित है। इसमें विशाल संग्रहालय के साथ साथ एक पुस्तकालय भी है। इसमें स्वतंत्रता संग्राम से जुडी कई चीज़ें रखी गयी हैं। यह एनी बेसेंट रोड वर्ली में स्थित है। यहाँ करीब 14 गैलरियों में 50000 वस्तुएं प्रदर्शित की गयी हैं। सारा दृश्य चित्रों, मूर्तियों और थ्री डी इमेजेज में ध्वनियों के माध्यम से प्रदर्शित किया गया है।
जहांगीर आर्ट गैलरी
यह गैलरी प्रिंस ऑफ़ चार्ल्स म्यूजियम के पास स्थित है जहाँ विश्व प्रसिद्ध चित्रकारों की कलाकृतियों का प्रदर्शन किया गया है। इस गैलरी का निर्माण 1952 में सर कावसजी जहांगीर की स्मृति में किया गया था। कलाप्रेमियों के लिए यह एक बहुत ही उत्कृष्ट जगह है।
प्रिंस ऑफ़ वेल्स संग्रहालय
यह संग्रहालय विलिंगटन सर्किल के निकट है। इसकी स्थापना 1905 में जॉर्ज पंचम के प्रथम भारत आगमन के उपलक्ष्य में की गयी थी। इस संग्रहालय में देखने लायक बहुत सारी चीज़ें रखी गयी हैं। यह देश के सबसे अच्छे संग्रहालयों में से एक है।
मुंबई के धार्मिक स्थल
सिद्धि विनायक मंदिर
प्रभादेवी स्थित श्री सिद्धि विनायक गणपति मंदिर मुंबई में धार्मिक आस्था वालों के लिए एक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल है। इसकी स्थापना 19 नवंबर 1801 में लक्षमण विठू और देऊबाई पाटिल के द्वारा की गयी थी। इसमें एक मंडप है जिसमे सिद्धि विनायक के दाहिने ओर मुड़ी सूंड वाली प्रतिमा है। लकड़ी के दरवाजों पर अष्टविनायक की सुन्दर आकृतियां नक्काशी की गयी हैं। छत का आतंरिक हिस्सा सोने के परत से सजा हुआ है। यहाँ हर समय भीड़ लगी होती है।
महालक्ष्मी मंदिर
यह मंदिर महालक्ष्मी स्टेशन देसाई मार्ग पर स्थित है। मंदिर के पीछे कुछ सीढियाँ उतरने पर समुद्र का विशाल नज़ारा दीखता है। यहाँ लोग मन्नत के तौर पर सिक्का सटाते हैं।
हाजी अली दरगाह
यह वर्ली में स्थित एक छोटे से टापू पर बना हुआ एक दरगाह है जिसे पुल द्वारा जोड़ा गया है। यह मुस्लिमों का एक महत्वपूर्ण स्थान है। यहाँ सैय्यद पीर हाजी शाह बुखारी की मज़ार है। यह एक दर्शनीय स्थल है। दरगाह के पीछे की चट्टानों पर समुद्र की लैगरें टकराती हैं तो एक बहुत ही मनोरम दृश्य और एक बहुत ही मधुर संगीतमय ध्वनि उत्पन्न होती है।
सेंट जोन्स चर्च
यह चर्च 1838 के सिंध अभियान और 1843 के प्रथम अफगान युद्ध के दौरान शहीद हुए सैनिकों की याद में बनवाया गया है।
मुंबई के पार्क तथा अन्य घूमने वाले स्थान
गेट वे और इंडिया
यह अपोलो बन्दर एरिया में स्थित एक महत्वपूर्ण दर्शनीय स्थल है। इसकी दुरी क्षत्रपति शिवाजी टर्मिनस से तीन किलोमीटर है। यह समुद्र के किनारे स्थित है जिसके पीछे भारत का पहला फाइव स्टार होटल ताज स्थित है। इसका निर्माण किंग जॉर्ज पंचम और क्वीन मैरी के मुंबई में 1911 आगमन को यादगार बनाने के लिए किया गया था। यह 1924 में बन कर तैयार हुआ। यह इंडो सारसेनिक शैली में बनी 26 मीटर ऊँची इमारत है। गेट वे ऑफ़ इंडिया और मुंबई की खूबसूरती को यहाँ पर चलने वाले मोटर बोटों से समुद्र में जाकर देखा जा सकता है।
तारापोरवाला एक्वैरियम
मरीन ड्राइव पर स्थित यह एक्वेरियम पर्यटकों के आकर्षण का ख़ास केंद्र है। यहाँ समुद्री तथा मीठे जल के जंतुओं को देखा जा सकता है। इसमें 12 फ़ीट और 180 डिग्री एक्रेलिक ग्लास टनल में भिन्न भिन्न तरह के समुद्री जीव दिख सकते हैं। इसमें 400 प्रजातियों की 2000 से भी ज्यादा मछलियां रखी हुई हैं। इसमें कुछ विशेष पूल बने हुए हैं जिसमे बच्चे मछलियों को छू सकते हैं।
जीजा माता उद्यान
यह मुंबई का चिड़िया घर है। इसे पहले रानी बाग़ कहा जाता था। इसका एक और नाम है वीर माता जीजा बाई भोसले उद्यान। यह करीब पचास एकड़ में फैला हुआ है। यह बैकुला में स्थित है।
एस्सेल वर्ल्ड
यह एक मनोरंजन और वाटर पार्क है। इसे डिज्नी लैंड की तर्ज पर बनाया गया है। इसमें बहुत सारे झूले, खिलौना ट्रैन, वाटर एम्यूजमेंट की सुविधाएँ हैं। मुंबई आने वाले एकबार यहाँ जरूर घूमने आते हैं।
हैंगिंग गार्डन
ये गार्डन मालाबार हिल्स की ढलानों पर स्थित हैं। इसी के सामने कमला नेहरू पार्क भी स्थित है। यहाँ से समुद्र और मरीन ड्राइव का दृश्य बहुत ही सुन्दर दीखता है। ये दोनों गार्डन हमेशा पर्यटकों से भरा रहता है। यहाँ पहुंचने के लिए चरनी रोड या ग्रांट रोड से बस मिलती है।
मुंबई के बीच या समुद्री तट
जुहू चौपाटी
यह मुंबई के सुन्दर समुद्र तटों में से एक है। यह एक विस्तृत तट है जहाँ हर वक्त मेले की तरह भीड़ लगी रहती है। इसके किनारे बड़े बड़े होटल बने हुए हैं। यहाँ का सूर्यास्त बहुत ही प्रसिद्ध है। यहाँ लोग समुद्र की लहरों को देखने उनमे भीगने आते हैं। यहाँ सांताक्रूज़ स्टेशन से पंहुचा जा सकता है।
गिरगॉव चौपाटी
मुंबई के प्रसिद्ध तटों में से गिरगॉव चौपाटी भी एक है। यहाँ पर लोग समुद्र का सुन्दर नज़ारा, लहरों का आना जाना देखने आते हैं। शाम के समय यहाँ काफी भीड़ होती है।
मरीन ड्राइव: क्वींस नैकलैस
दक्षिण मुंबई में करीब 3.6 किलोमीटर लम्बा समुद्री घेरा है जिसके किनारे किनारे फुटपाथ के साथ साथ सड़क बनी हुई है। यह अंग्रेजी के "सी " अकार में सिक्स लेन की समुद्र के किनारे किनारे सड़क है। इसका निर्माण भागोजीशेठ और पल्लोनजी मिस्त्री के द्वारा हुआ था। यह नरीमन पॉइंट और बाबुलनाथ मालाबार हिल्स को जोड़ती है। यह पूरा क्षेत्र किसी भी एंगल से देखा जाये बहुत ही खूबसूरत दीखता है। मालाबार हिल्स से रात में इस क्षेत्र को देखा जाये तो इसकी स्ट्रीट लाइट्स अंग्रेजी के सी अकार में ऐसे दिखती है मानो यह गले का हार हो। इसी कारण इसे क्वींस नेकलेस भी कहा जाता है।
अन्य दर्शनीय स्थल
छत्रपति शिवाजी टर्मिनस
विक्टोरियन गोथिक शैली में बना यह भवन मुंबई पर्यटकों के आकर्षण के ख़ास केंद्र है। इसमें विक्टोरियाई इतालवी गोथिक के साथ साथ भारतीय स्थापत्य कला का अदभुत संयोग दीखता है। यह सेंट्रल रेलवे का सबसे बड़ा और आखरी स्टेशन है। इसका पुराना नाम मुंबई विक्टोरिया टर्मिनस था। उस समय इसे बॉम्बे वीटी भी कहा जाता था। वर्तमान में इसका नाम छत्रपति शिवाजी टर्मिनस या सीएसटी है। यह भवन यूनेस्को की हेरिटेज भवनों की सूची में शामिल है।
हुतात्मा चौक या फ़्लोरा फाउंटेन
यह चौक छत्रपति शिवाजी टर्मिनस से कुछ आगे स्थित है। इसका निर्माण 1869 में मुंबई के गवर्नर सर बार्टले के सम्मान में किया गया था। पहले इसका नाम फ़्लोरा फाउंटेन था जो बाद महाराष्ट्र राज्य आंदोलन में शहीद हुए लोगों की स्मृति में हुतात्मा चौक के नाम से जाना जाने लगा। इसी के आस पास मुंबई हाई कोर्ट, राजा बाई
टावर, एशियाटिक लाइब्रेरी आदि स्थित है।
महा लक्ष्मी रेसकोर्स
महालक्ष्मी रेस कोर्स महालक्ष्मी स्टेशन के पश्चिम तरफ स्थित है। यह भारत के प्रमुख रेस कोर्सों में से एक माना जाता है। यहाँ नवम्बर से मार्च तक हर रविवार को घोड़ों की रेस आयोजित की जाती है जिनपर खूब बाज़ियां लगती हैं।
नरीमन पॉइंट
यह चर्चगेट के निकट स्थित एक व्यापारिक केंद्र है। यहाँ एक्सप्रेस टावर, एयर इंडिया, मफत लाल हाउस, बजाज टावर, विधान सभा जैसी बहुत सारी इमारतें हैं। यह भारत के सबसे महंगे क्षेत्रों में से एक है।
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