Naye Joote Purane Joote A Motivational Story

Naye Joote Purane Joote  A Motivational Story



सौरभ स्कूल से आया और बैग पटक कर अपने कमरे में जा पंहुचा।  कमरे में पहुंचकर वह चादर तान कर सो गया। थोड़ी देर में मम्मी आयी और उसे जगाया उठो बेटे क्या हुआ ऐसे क्यों सोये हो तबियत तो ठीक है न ? माँ ने उसके सर पर हाथ रखते हुए पूछा। सौरभ तकिये पर चेहरे को टिका कर सूबक रहा था। मम्मी उसकी पीठ पर हाथ फेरते हुए पूछा बताओ बेटे क्या हुआ। सौरभ ने उसी अवस्था में सोये सोये कहा "मम्मी मै कल से स्कूल नहीं जाऊंगा।" मम्मी ने कहा "क्यों , क्यों नहीं जाओगे ?" मम्मी स्कूल के सब बच्चे हँसते हैं कहते हैं "देखो फिर वही पुराने जूते पहन कर आ गया।  मम्मी तुम्ही बताओ मैंने पापा से कितनी बार कहा था मुझे नए जूते ला दो, लेकिन नहीं उन्हें तो अपने काम से फुर्सत ही नहीं। मेरी कौन सुनता है ?" "बेटा तुम्हारे जूते तो अभी नए ही हैं कितने दिन हुए उन्हें लिए हुए और तुम दोस्तों की बातों में आ गए, देखो लोग हर बात में ऐब निकालते हैं तुम्हें उनकी बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए।"  "नहीं मम्मी मै किसी की बातों में नहीं आता ये जूते पहनने पर चुभते हैं और ये बहुत टाइट भी हो गए हैं तुम्हारी कसम मम्मी।"  मम्मी हँस पड़ी "बस इत्ती सी बात, चलो उठो आओ खाना खा लो मै पापा से बात करती हूँ।" सौरभ ने अब सुबकना बंद कर दिया था। वह मम्मी के साथ किचेन में आया हाथ मुँह धोकर खाना खाने बैठ गया। मम्मी ने खाना परोसने में देर नहीं की। सौरभ जल्दी जल्दी खाकर बाहर खेलने भागा।
Naye Joote Purane Joote  A Motivational Story

सौरभ अपने भाई बहनों में सबसे छोटा था। शायद इसी वजह से वह सबका दुलारा भी था। सौरभ को इस बात का एहसास था इसी वजह से वह जिद्दी भी हो गया था। हर छोटी बात के लिए मचलने लगता।, रोने लगता सारा घर सर पर उठा लेता। थक हारकर मम्मी पापा को उसकी जिद्द पूरी करनी पड़ती। हालांकि उसके पापा की आर्थिक स्थिति उतनी अच्छी नहीं थी, घर का खर्च भी जैसे तैसे चलता था फिर भी उनकी कोशिश रहती थी कि उनके बच्चे कभी किसी चीज़ के लिए तरसे नहीं।
शाम को सौरभ खेल कर वापस आया आते ही मम्मी से पूछा मम्मी पापा आ गए क्या ? मम्मी बोली नही बेटे पापा तो अभी तक नहीं आये , लगता है ऑफिस में कुछ ज्यादा ही काम है आज। सौरभ बेसब्री से पापा की प्रतीक्षा करने लगा। रात  के आठ बज गए फिर साढ़े आठ और नौ भी बज गए पापा का कुछ पता नहीं। सौरभ के सब्र का बांध टूट रहा था। आखिरकार घडी ने दस बजाये और दरवाजे पर पापा ने कुण्डी।  सौरभ ने दौड़ कर  दरवाजा  खोला।  पापा के आते ही सौरभ वही रट लेकर बैठ गया। पापा ने कहा ठीक है बेटे मै खरीद दूंगा तेरे लिए नए जूते किन्तु आज मै बहुत थक गया हूँ। कल चलते है। सौरभ रोने लगा। उसके पापा ने उसे चुप कराते हुए कहा देखो जिद्द नहीं करते हैं। वैसे भी आज सारी दुकानें बंद हो चुकी हैं। पापा खाना खाने लगे, सौरभ वहीँ बैठा सुबक रहा था। रोते रोते वह वही सो गया।
अगली सुबह जब सौरभ की नींद खुली तो उसने देखा उसके सामने जुटे का डब्बा रखा हुआ है। डरते डरते वह उठा और उसे खोल कर देखा तो उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा। उन डब्बों में एकदम नए एक जोड़ी जूते  रखे हुए थे। उसे तो विश्वास ही नहीं हुआ। तभी उसकी नज़र मम्मी पर पड़ी वह मम्मी से पूछ बैठा। मम्मी ने बताया। रात में तुमको रोते देख कर तुम्हारे पापा से रहा नहीं गया और वे  रात में ही दूकान खुलवाकर तुम्हारे लिए जूते ले आये।
आज सौरभ इठलाता हुआ स्कूल जा रहा था। उसकी निगाहें बार बार आस पास के लोगों पर जा रहीं थीं। उछलते कूदते फांदते उसके कदम स्कूल की ओर बढ़ रहे थे। बड़ा प्रसन्न था उसे लग रहा था क्लास में उसके जैसे जूते किसी के पास नहीं होंगे। आज वह सबको दिखायेगा, देखो मेरे पास भी नए,अच्छे और महँगे जूते हैं। वह स्कूल पंहुचा। कक्षा के अंदर वह बड़ी अदा से दाखिल हुआ। अपने दोस्तों की तरफ बड़े ही अभिमान से देखा मानो वह कहना चाहता हो देख लो मेरे पास भी नए जूते  आ गए। दोस्तों ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी वे अपने काम में लगे रहे। आखिरकार उससे नहीं रहा गया। वह उठ कर रोहित के पास गया और पूछा क्या बात है सब ठीक है न। रोहित कुछ न कह कर अपने काम में लगा रहा। सौरभ उतावला हो रहा था अपने जूतों की प्रशंसा सुनने के लिए। आखिर क्या हो गया है सबको , कल तक तो सब बड़े ताने दे रहे थे आज सबकी बोलती बंद हो गयी। लगता है सब मेरे जूतों से जल रहे हैं। सौरभ के मन में तरह तरह के विचार आ रहे थे। क्लास में टीचर आ चुके थे। उन्होंने पढ़ाना शुरू कर दिया था। सौरभ का मन पढ़ाई में लग नहीं रहा था। आखिरकार  छुट्टी हुई और सब बच्चे अपने अपने घर की ओर चल पड़े। सौरभ का सारा उत्साह ठंडा पड़ चूका था। उसके कदम घर की ओर धीरे धीरे बढ़ रहे थे। उसे अब अपने जूते भारी लग रहे थें। घर में घुस कर धीरे से अपना बस्ता रखा और अपने जूते खोलने लगा। तभी उसकी नज़र सामने रखे जूतों पर पड़ी  अरे यह क्या नए जूते तो यहाँ रखे हुए हैं। वह अपने पैर  के जूतों को देखने लगा। उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा। उसके पैरों में पुराने जूते ही थे। ऐसा कैसे हो गया। सुबह में उसने नए डब्बे से जूते निकले थे। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। तभी मम्मी आयी। वह मम्मी की तरफ जूते लिए हुए देखा मानो वह जानना चाहता हो ऐसा कैसे हुआ। तब मम्मी ने बताया तुम्हारे जूतों को  पापा ने बदल दिए थे। उन्होंने डब्बे में से नए जूतों को निकाल कर तुम्हारे पुराने जूते रख दिए थे। मगर मम्मी अगर मैंने पुराने जूते पहने थे तो वे चुभ क्यों नहीं रहे थे। बेटे तुम्हारे पुराने जूते एकदम ठीक ठाक हैं और वे ज्यादा पुराने भी नहीं हुए हैं देखने में भी वे पुराने नहीं लगते। तुम्हे वे जूते इसलिए चुभ रहे थे क्योंकि तुम्हारे दिमाग में यह बात घुस गयी थी कि जूते पुराने हो गए हैं। आज यह बात तुम्हारे दिमाग में नहीं थी इसलिए जूते तुम्हे नहीं चुभे। सौरभ को अब समझ में आने लगा कि शरीर वैसा ही महसूस करता है जैसा दिमाग कहता है।

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