Ghouta की सड़के लाल हैं खून से लथपथ हैं चारों ओर रोने, कराहने, चीखने चिल्लाने के सिवाय कुछ भी नहीं सुनाई पड़ रहा है। अस्पताल धाराशाई हैं घर तबाह हैं स्कुल के परखच्चे उड़े हुए हैं। शहर का शहर मरघट बना हुआ है। बाप अपने बच्चों की लाश कंधो पे लिए दौड़ रहा है बच्चे अपनी माँ को दफना रहे हैं भाई अपनी बहन के जनाजे की तैयारी कर रहा है। किसी का हाथ बम से उड़ा हुआ है किसी के पैर के चिथड़े उड़े हुए हैं। मानवता लहूलुहान है इंसानियत शर्मशार है।
Ghouta ने पिछले एक हफ्ते से खास कर 19 और 20 फ़रवरी को तबाही का जो मंज़र देखा उसे सभ्य समाज का हिस्सा तो कभी नहीं कहा जा सकता। लगता ही नहीं हम 21 वी शताब्दी में जी रहे हैं , मासूम बच्चे ,महिलाये ,बेगुनाह पुरुष सबके सब कतल किये जा रहे हैं मानो भेड़ बकरियां हो। Ghouta बमो और टैंकों की प्रयोगशाला बना हुआ है। वास्तव में यह युद्ध नहीं नरसंहार है।
पिछले साल अलेप्पो जीत के बाद ISIS Syria से लगभग समाप्त हो गया था जो थोड़े बहुत बिद्रोही बचे थे वे Ghouta में जा छिपे। Syria की बशर अल असद सरकार अपनी जीत को जारी रखते हुए Ghouta को घेर लिया और उसे एक पिजरे की तरह बना दिया यानि हर आवागमन उसकी नज़र से हो कर ही हो सकता है।हालाँकि ऐसी स्थिति 2013 से ही बनी हुई है। बशर अल असद सरकार की नीति रही है या तो सरेंडर करो या मरो। लेकिन इस नीति की वजह से आम जनता जिसका कोई कसूर नहीं है इसमें पिस रही है मारी जा रही है। Ghouta में भोजन ,दवाए और अन्य रोज़मर्रा की जरुरी चीज़ो का घोर संकट हो गया। लोग भूखों मरने लगे। इसके उपर बशर अल असद सरकार जो रूस और ईरान के समर्थन से हवाई हमला तोपों से हमला कर रही है।
सोमवार यानि 26 फ़रवरी तक Syrian Observatory For Human Rights की रिपोर्ट के अनुसार 561 लोग मारे जा चुके थे। कई अन्य रिपोर्ट्स के अनुसार पिछले तीन हफ़्तों में हज़ारों लोग मारे गए हैं जिसमे बड़ी संख्या में महिलाये और छोटे बच्चे थे। Eastern Ghouta में 2013 से सिविल वॉर चल रहा है। पिछले 19 फ़रवरी को सीरिया की सेना रूस के बॉम्बर प्लेन्स के द्वारा इस शहर पर लगातार बम बरसाए जिसमे सैकड़ो लोग , महिलाओं और बच्चो सहित मारे गए। यह जानबूझ कर रिहाइशी इलाके में किया गया हमला था क्योँकि इसमें 6 से ज्यादा हॉस्पिटल्स , अनगिनत मेडिकल सेंटर्स , रिहाइशी मकान तबाह कर दिए गए। हमलावर मोर्टार शेल्स बैरल बॉम्ब्स , क्लस्टर बॉम्ब्स का ज्यादा से ज्यादा प्रयोग किये। कुछ जगहों पर तो क्लोरीन गैस के भी इस्तेमाल के साक्ष्य मिले हैं।
Eastern Ghouta Syria की राजधानी Damascus से करीब 10 KM पूरब में है। इसकी जनसँख्या करीब 4 लाख है जिसमे आधे 18 साल से कम के बच्चे हैं। जब से सीरिया में सिविल वॉर शुरू हुआ तब से करि 465000 syrians मरे जा चुके हैं और 120 लाख लोग अपना घर शहर छोड़ कर जा चुके हैं।
हालाँकि 2017 में टर्की ,ईरान और रूस में एक समझौता हुआ जिसमे Damascus के आस पास के इलाको को सेफ जोन घोषित किया गया था। जिसमे इस क्षेत्र के ऊपर से हवाई जहाज भी उड़ाने पर रोक थी जिसका खुलकर उल्लंघन हुआ।
UNICEF ने इस नरसंहार पर एक ब्लेंक स्टेटमेंट यह कहते हुए जारी किया है कि उसके पास शब्द नहीं है इस पर कुछ कहने को। यह उसकी गुस्से को भी दिखाता है और साथ ही उसकी हेलपनेसनेस को भी दर्शाता है। UN ने ceasefire की अपील की थी लेकिन वह भी कोई असर नहीं दिखा सकी। रूस ने मंगलवार से 5 घंटे का युद्ध विराम शुरू किया है जिससे की आम लोग उस क्षेत्र से निकल सकें किन्तु यह युद्ध विराम भी बहुत असरकारक नहीं साबित हुआ। ग्राऊंड रिपोर्ट के अनुसार पॉज ऑवर में भी गोले दगते रहे।
इंसानियत के क़त्ल के इस खेल में इंसान क्यों खामोश है आश्चर्य है ?
Ghouta ने पिछले एक हफ्ते से खास कर 19 और 20 फ़रवरी को तबाही का जो मंज़र देखा उसे सभ्य समाज का हिस्सा तो कभी नहीं कहा जा सकता। लगता ही नहीं हम 21 वी शताब्दी में जी रहे हैं , मासूम बच्चे ,महिलाये ,बेगुनाह पुरुष सबके सब कतल किये जा रहे हैं मानो भेड़ बकरियां हो। Ghouta बमो और टैंकों की प्रयोगशाला बना हुआ है। वास्तव में यह युद्ध नहीं नरसंहार है।
पिछले साल अलेप्पो जीत के बाद ISIS Syria से लगभग समाप्त हो गया था जो थोड़े बहुत बिद्रोही बचे थे वे Ghouta में जा छिपे। Syria की बशर अल असद सरकार अपनी जीत को जारी रखते हुए Ghouta को घेर लिया और उसे एक पिजरे की तरह बना दिया यानि हर आवागमन उसकी नज़र से हो कर ही हो सकता है।हालाँकि ऐसी स्थिति 2013 से ही बनी हुई है। बशर अल असद सरकार की नीति रही है या तो सरेंडर करो या मरो। लेकिन इस नीति की वजह से आम जनता जिसका कोई कसूर नहीं है इसमें पिस रही है मारी जा रही है। Ghouta में भोजन ,दवाए और अन्य रोज़मर्रा की जरुरी चीज़ो का घोर संकट हो गया। लोग भूखों मरने लगे। इसके उपर बशर अल असद सरकार जो रूस और ईरान के समर्थन से हवाई हमला तोपों से हमला कर रही है।
सोमवार यानि 26 फ़रवरी तक Syrian Observatory For Human Rights की रिपोर्ट के अनुसार 561 लोग मारे जा चुके थे। कई अन्य रिपोर्ट्स के अनुसार पिछले तीन हफ़्तों में हज़ारों लोग मारे गए हैं जिसमे बड़ी संख्या में महिलाये और छोटे बच्चे थे। Eastern Ghouta में 2013 से सिविल वॉर चल रहा है। पिछले 19 फ़रवरी को सीरिया की सेना रूस के बॉम्बर प्लेन्स के द्वारा इस शहर पर लगातार बम बरसाए जिसमे सैकड़ो लोग , महिलाओं और बच्चो सहित मारे गए। यह जानबूझ कर रिहाइशी इलाके में किया गया हमला था क्योँकि इसमें 6 से ज्यादा हॉस्पिटल्स , अनगिनत मेडिकल सेंटर्स , रिहाइशी मकान तबाह कर दिए गए। हमलावर मोर्टार शेल्स बैरल बॉम्ब्स , क्लस्टर बॉम्ब्स का ज्यादा से ज्यादा प्रयोग किये। कुछ जगहों पर तो क्लोरीन गैस के भी इस्तेमाल के साक्ष्य मिले हैं।
Eastern Ghouta Syria की राजधानी Damascus से करीब 10 KM पूरब में है। इसकी जनसँख्या करीब 4 लाख है जिसमे आधे 18 साल से कम के बच्चे हैं। जब से सीरिया में सिविल वॉर शुरू हुआ तब से करि 465000 syrians मरे जा चुके हैं और 120 लाख लोग अपना घर शहर छोड़ कर जा चुके हैं।
हालाँकि 2017 में टर्की ,ईरान और रूस में एक समझौता हुआ जिसमे Damascus के आस पास के इलाको को सेफ जोन घोषित किया गया था। जिसमे इस क्षेत्र के ऊपर से हवाई जहाज भी उड़ाने पर रोक थी जिसका खुलकर उल्लंघन हुआ।
UNICEF ने इस नरसंहार पर एक ब्लेंक स्टेटमेंट यह कहते हुए जारी किया है कि उसके पास शब्द नहीं है इस पर कुछ कहने को। यह उसकी गुस्से को भी दिखाता है और साथ ही उसकी हेलपनेसनेस को भी दर्शाता है। UN ने ceasefire की अपील की थी लेकिन वह भी कोई असर नहीं दिखा सकी। रूस ने मंगलवार से 5 घंटे का युद्ध विराम शुरू किया है जिससे की आम लोग उस क्षेत्र से निकल सकें किन्तु यह युद्ध विराम भी बहुत असरकारक नहीं साबित हुआ। ग्राऊंड रिपोर्ट के अनुसार पॉज ऑवर में भी गोले दगते रहे।
इंसानियत के क़त्ल के इस खेल में इंसान क्यों खामोश है आश्चर्य है ?
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