Gautam Buddh

एक समय की बात है गौतम बुद्ध का किसी गांव में आगमन हुआ। गौतम बुद्ध उस गांव में कुछ दिनों के लिए ठहरे। रोज़ उनके पास गांव वालों की भीड़ लगी रहती थी।  दूर दूर से लोग उनके पास आने लगे। गौतम बुद्ध उनकी बातों को ध्यान से सुनते और जो भी उचित समाधान होता उन्हें समझाते। लोग भी प्रसन्न और संतुष्ट होकर वहां से जाते।
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एक दिन की बात है उनके पास एक स्त्री रोते रोते आयी। वह बिलख बिलख कर रो रही थी। गौतम बुद्ध ने उससे उसके आने का कारण पूछा। उसने बताया कि उसके  एकलौते  पुत्र की मृत्यु हो गयी है। उसने यह भी बताया कि उस पुत्र के सिवा इस दुनिया में उसका कोई नहीं है। वह बुद्ध के पैरों में गिर गयी और उनसें उसे जीवित करने की प्रार्थना करने लगी। गौतम बुद्ध ने उसे बहुत समझाया कि यह असंभव है जिसकी मृत्यु हो गयी हो उसे जीवित नहीं किया जा सकता किन्तु वह औरत नहीं मानी। उसने कहा वह अपने प्राण त्याग देगी अगर उसका पुत्र जीवित न हुआ तो। गौतम बुद्ध ने अंत में उससे कहा सुनो हे स्त्री , मै तुम्हारे पुत्र को जीवित कर दूंगा लेकिन उसके पहले तुम्हे मेरा एक काम करना होगा।  स्त्री ने कहा अपने पुत्र को जीवित करने के लिए मुझे जो भी करना होगा मै  करुँगी। आप बताईये मुझे क्या करना होगा। गौतम बुद्ध ने उससे कहा तुम मुझे एक मुट्ठी सरसो ला के दे दो जिससे कि मै  तुम्हारे पुत्र को जीवित कर दूँ। स्त्री ने कहा बस इतनी सी बात मै अभी गयी और अभी ले के आयी। गौतम बुद्ध ने कहा पहले मेरी पूरी बात तो सुन लो यह सरसो किसी ऐसे घर से लाना जिसके घर में आज तक कोई मरा  न हो। वह स्त्री तुरंत वहा से निकली और गांव के  सबसे पहले घर में गयी। घरवाले ने कहा सरसो तो मै दे देता किन्तु पिछले साल मेरे पिताजी की मृत्यु हो गयी थी। उस औरत ने कहा नहीं नहीं तुम्हारे घर से सरसो हमें नहीं चाहिए। वह फिर दूसरे घर गयी। वहा भी उसे कुछ ऐसा ही सुनने को मिला। धीरे धीरे वह गांव के एक एक घर में घूम आयी लेकिन उसे ऐसा कोई घर नहीं मिला जहाँ किसी की मृत्यु न हुई हो। इसी तरह से दो तीन दिन बीत गए उसे एक मुट्ठी सरसो नहीं मिला। उसे कई ऐसे घर मिले जहाँ दुधमुहे बच्चे के माँ बाप दोनों मर चुके थे किसी नवविवाहिता की मांग उजड़ गयी थी या फिर किसी का जवान पुत्र मर गया हो। धीरे धीरे उसकी समझ में आने लगा कि संसार में अकेली वही दुखी नहीं है और न ही अकेला उसका ही पुत्र मारा है। सब अपने दुःख को सहन करते हैं और फिर धैर्यपूर्वक जीवन यापन करते हैं। शाम को वह गौतम बुद्ध के पास पहुंची और उनके पैरों में गिर गयी और लगी रोने। पर अब उसका दिल मजबूत हो चूका था। उसमे हिम्मत आ चुकी थी गौतम बुद्ध ने उसे उठाया और जीवन के सत्य को समझाया और बताया कि उसे भी जीवन की इस सचाई को स्वीकार करना चाहिए। वह स्त्री जब वहां से वापस लौटी तो उसका हृदय शांत और संतुष्ट हो चूका था। 

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