एक बार की बात है गौतम बुद्ध उसी रास्ते से गुजर रहे थे। लोगों ने उन्हें बहुत मना किया किन्तु वे नहीं माने। चलते चलते जब वे काफी अंदर तक आ गए तो अचानक उनके सामने उंगलीमाल डाकू आ गया। आते ही वह अपने हथियारों से उन्हें डराना शुरू कर दिया । गले में उँगलियों की माला , भयंकर भेष भूषा , बड़े बड़े बाल , घनी मूँछे और ऊंची आवाज़ किसी को भी डराने के लिए काफी थी । किन्तु बुद्ध अपने चित परिचित अंदाज में उसी तरह से मुस्कुराते रहे । डाकू को बहुत ही आश्चर्य हुआ। उसने अपने जीवन में ऐसा पहली बार देखा था कि कोई उसके सामने खड़ा हो और गंभीर मुद्रा में मुस्कुरा रहा हो। उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा। उसने फिर उन्हें डराने का प्रयास किया। किन्तु बुद्ध उसी तरह शांत बने रहे। बुद्ध के शांत ,भयहीन और मुस्कुराते हुए चेहरे को देखकर वह भयंकर, निर्दयी और अशिष्ट डाकू अंदर ही अंदर घबराने लगा। काफी प्रयास करने के बाद भी जब गौतम बुद्ध नहीं डरे तो उसने अपनी तलवार निकाल कर कहा मैं तुम्हारी जान ले लूंगा। गौतम बुद्ध ने कहा ठीक है जान ले लेना लेकिन जान लेने के पहले मेरा एक काम कर दो। डाकू ने कहा ठीक है लेकिन मुझे क्या करना होगा । बुध्द ने कहा सामने के बृक्ष से एक टहनी तोड़ के लाओ। डाकू ने कहा बस इतना सा काम और यह कह कर वह टहनी तोड़ लाया। गौतम बुद्ध ने टहनी लिया और फिर उसे कहा जाओ अब जहाँ से लाये हो वहां जोड़ दो। डाकू के क्रोध का ठिकाना न रहा। उसने कहा ऐसा कैसे संभव है। तब बुद्ध ने कहा जिस चीज़ को तुम जोड़ नहीं सकते हो उसे तुम्हे तोड़ने का भी कोई अधिकार नहीं है। इसी तरह जब तुम किसी को जीवन दे नहीं सकते तो तुम्हे किसी के जीवन लेने का कोई अधिकार नहीं। अब डाकू को अपनी गलती का अहसास हो गया। वह गौतम बुद्ध के पैरों में गिर पड़ा और माफ़ी मांगने लगा। बुद्ध तो महात्मा थे ही उन्होंने उसे माफ़ कर दिया और उसे बहुत सारा ज्ञान प्रदान करके उसे एक अच्छा जीवन बिताने के लिए प्रेरित कर उसका जीवन सुधार दिया।
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