संसार के अधिकांश धर्म किसी न किसी वजह से चाहे वह मान्यता हो,उत्तराधिकार हो ,रीति रिवाज़ हो या विश्वास हो कई कई भागों में बंटे हुए है। ईसाई प्रोटेस्टेंट और कैथोलिक में,हिन्दू शैव और वैष्णव में,बौद्ध महायान और हीनयान में, जैन श्वेताम्बर और दिगंबर में ,मुस्लिम शिया और सुन्नी में बंटे मिलते हैं। मुस्लिम वास्तव में कई भागों में बंटे हुए हैं पर उनमे शिया और सुन्नी मुख्या हैं। दोनों में इतना भेदभाव है कि वे एक दूसरे का पानी भी पीना नहीं पसंद करते।
Shia Aur Sunni Me Kya Antar Hai:
- शिया और सुन्नी में भेदभाव मोहम्मद साहेब की मृत्यु 632 ईस्वी के साथ ही शुरू हो गया था। मोहम्मद साहेब की मृत्यु के बाद उत्तराधिकारी के सवाल पर विवाद खड़ा हो गया। सुन्नियों ने उनकी मौत के बाद अबू बकर, उमर उस्मान और अली को अपना खलीफा मान लिया था। जबकि शिया मुस्लिम के अनुसार पहले के तीनो खलीफा गलत तरीके से बने थे। अली को जहाँ सुन्नी अपना चौथा खलीफा माना वहीँ शियाओं ने उन्हें खलीफा न मान कर अपना इमाम माना। शियाओं ने खलीफा की जगह इममियत में विश्वास रक्खा और इस तरह उनके 12 इमाम हुए। अली,अली के बेटे हसन और अली के दूसरे बेटे हुसैन इन तीनो को सुन्नी भी मानते हैं किन्तु खिलाफत और इमामत का विवाद ऐसा हुआ कि इस्लाम धर्म में दो भाग हो गए। समय के साथ इनके रीती रिवाज,नमाज पढ़ने के तरीके, विश्वास में अंतर आते गए। दोनों के बीच दूरिओं की वजह से बहुत सारी गलतफहमियां भी आती गयी और दोनों के बीच नफरत बढ़ती गयी।
- शिया और सुन्नी के नमाज पढ़ने के तरीके अलग अलग हैं। शिया दिन में केवल तीन बार नमाज़ पढ़ते हैं जबकि सुन्नी पांच बार नमाज़ पढ़ते हैं। शिया मगरिब और ईशा की नमाज़ को मिला देते हैं। शिया हाथ खोल कर नमाज़ पढ़ते हैं जबकि सुन्नी हाथ बांध कर। दोनों समुदाय अपने अपने तरीके को जायज़ और मोहम्मद साहेब का तरीका मानते हैं।
- शिया और सुन्नी मे मुख्य अंतर उनके त्यौहार मुहर्रम में दीखता है। मुहर्रम हिज़री सम्वत का एक महीना है। यह इमाम अली के बेटे हुसैन के शहादत का महीना होता है। इस महीने की 10 तारीख को कर्बला में हुसैन का क़त्ल कर दिया गया था। उन्ही की शहादत में शिया इस मौके पर मातम मनाते हैं। इस शहादत को याद करके वे ताज़िये निकालते हैं तथा जुलुस में खुद को खंजर ,चाकू से घायल भी कर लेते हैं। सुन्नी ऐसा नहीं करते और इन सब चीज़ों को गलत मानते हैं। सुन्नी इसे एक तरह की बुतपरस्ती यानि मूर्ति पूजा कहते हैं जो कि इस्लाम में जायज़ नहीं माना जाता। शियाओं का मानना है कि हुसैन साहेब को सुन्निओं ने मारा था जबकि सुन्नी कहते हैं कि शियाओं ने खुद हुसैन साहेब की हत्या की और खुद ही रोते हैं। शिया पुरे सवा दो महीने मातम मनाते हैं और कोई भी ख़ुशी का काम इस दौरान नहीं करते जबकि सुन्नी हुसैन के क़त्ल का दुःख मनाते हैं पर शियाओं की तरह ताज़िये, जुलुस या इस तरह का कोई काम नहीं करते। इस दौरान कोई ख़ुशी का अवसर हो तो सुन्नी उसे मनाने से परहेज़ नहीं करते।
- शिया और सुन्नी का यह मतभेद मोहम्मद साहेब की मृत्यु के साथ ही शुरू हुआ था जो अब तक चला आ रहा है। शिया इमामों को मानते हैं जबकि सुन्नी खलीफाओं को मानते हैं। शिया सिर्फ अली को मानते हैं और खलीफाओं को मुनाफिक,ग़ासिब और ज़ालिम मानते हैं। शिया सजदे के समय अपना सर लकड़ी के बॉक्स या ईंट पर रखते हैं जबकि सुन्नी अपना सर जमीन पर रखते हैं।
- मुहर्रम के एक से दस तारीख तक शिया तबर्रा यानि एक प्रकार का अपमानजनक शब्द बोलते हैं। वे अपनी मजलिसों में बोलते हैं कर्बला के क़त्ल में शरीक खलीफाओं सहबियों और सुन्निओं के लिए होता है जबकि सुन्नी ऐसा मानते हैं कि यह उनके खिलाफ बोला जाता है।
- शिया अस्थायी शादी मुतुआ करते हैं जबकि सुन्निओं में यह नहीं होता।
- शियाओं के धार्मिक स्थान मस्जिद,इमामबाड़ा,ईदगाह और अशुरखाना होते हैं जबकि सुन्निओं के धार्मिक स्थान मस्जिद और ईदगाह होते हैं।
- पुरे विश्व में शियाओं की जनसँख्या 200 मिलियन के आस पास है जबकि सुन्निओं की जनसँख्या करीब 1.2 बिलियन है। शिया मुख्य रूप से ईरान,इराक,यमन,बहरीन,अज़रबैज़ान,लेबनान और भारत सहित कई अन्य देशों में कुछ संख्या में हैं जबकि सुन्नी विश्व के अधिकांश मुस्लिम देशों पाए जाते हैं और साथ ही थोड़ी बहुत संख्या में हर जगह मिलते हैं।
- शियाओं के धार्मिक व्यक्तिओं को आयातुल्लाह,इमाम,मुज्ताहिद,अल्लामा,मौलाना,होजातोलेसलाम,सैयद,मौल्लाह कहा जाता है जबकि सुन्नी धार्मिक व्यक्तिओं को खलीफा,इमाम,मुजतहिद,अल्लामा,मौलाना इत्यादि बोला जाता है।
- शियाओं का नारा "या अली" और "नारा ए हैदरी" है। शिया खैरल अमल शब्द का प्रयोग अधिक करते हैं तथा दुआ के बाद आमीन नहीं कहते।
- शिया मोहम्मद की पत्नी को षड्यंत्रकारी मानते हैं और मानते हैं कि उसी ने मोहम्मद साहेब को जहर देकर मारा था।
- शिया मज़ारों की इबादत करते हैं जबकि सुन्नी इसे गलत बताते हैं।
दोनों समुदाय के बीच मतभेद की खाई उत्तराधिकार से शुरू हुई और दूरिओं और ग़लतफ़हमिओं की वजह से यह और गहरी होती गयी नहीं तो दोनों में अधिकांश चीज़ें समान हैं जैसे दोनों अल्ला में विश्वास रखते हैं और एकेश्वरवादी हैं दोनों मोहम्मद साहेब को आखिरी पैगम्बर मानते हैं दोनों समुदाय एक ही कुरान में विश्वास रखते हैं दोनों के धार्मिक स्थल मस्जिद ही है।
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