दवा की दुकानों पर अक्सर एक शब्द सुनने को मिलता है वो है जेनेरिक दवा। दुकानदार कहते हैं यह जेनेरिक दवा है और यह काफी सस्ती है। हमें लगता है यह सस्ती है फायदा नहीं करेगी। ब्रांडेड कंपनी, उसके आकर्षक विज्ञापन,उनका महंगा मूल्य सब हमारे दिलो दिमाग में ऐसे छाये हुए हैं कि हम दुकानदार से कह उठते हैं भैया जेनेरिक मत देना। और हम महँगी दवाएं लेकर घर आते हैं पूरी संतुष्टि और उम्मीद के साथ। दोस्तों बात तो सही है हम अपने तथा अपने परिवार के स्वास्थ्य के प्रति पैसों का मोल नहीं देखते। देखना भी नहीं चाहिए किन्तु कई बार जानकारी के आभाव में हम जो काम दस रुपये में होना चाहिए उसकी जगह सौ और हजार खर्च कर देते हैं। इलाज के मामले में यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि वहां कितना पैसा खर्च होगा कोई नहीं जानता। तो आइये जानते हैं जेनेरिक दवाएं क्या होती है और क्या ये सचमुच फायदा करती हैं ?
जेनेरिक दवाओं के बारे में जानने के पहले हमें ब्रांडेड या पेटेंट दवाओं में बारे में जानना होगा।
ब्रांडेड या पेटेंट दवाएं वे दवाएं होती हैं जो किसी फार्मास्यूटिकल कंपनी के द्वारा रिसर्च के द्वारा खोजी और विकसित की गयी होती हैं। इसमें कंपनी का बहुत सारा पैसा और वर्षों का समय लगा होता है। अब कंपनी को उस दवा के लिए फ़ूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (FDA) से अप्रूवल लेना पड़ता है जिसमे उसे दवा निर्माण का प्रोसेस,डोज,सुरक्षा,शुद्धता इत्यादि सारी बातों को विस्तार से बताना होता है। इन सारी प्रक्रियाओं में कंपनी का अच्छा खासा पैसा लग जाता है। FDA से अप्रूवल मिलने के बाद कंपनी को अधिकार होता है कि एक ख़ास अवधि तक वह अपने द्वारा अविष्कृत दवा को अपने ब्रांड नाम से बेचे। इस दवा पर कंपनी का एकाधिकार होता है अर्थात दूसरी कोई भी कंपनी उस दवा के साल्ट या फारमूले को उस ख़ास अवधि के दौरान उस नाम से या किसी भी दूसरे नाम से न तो बना सकती है और न बेच सकती है। पेटेंट की अवधि के दौरान कंपनी दवा के अविष्कार,विकास,परिक्षण,निर्माण आदि पर हुए खर्चे को अपने पेटेंट एकाधिकार की वजह से बाजार से वसूलती है। अतः इस तरह की दवा काफी महँगी होती है। पेटेंट की अवधि प्रायः 10 से 15 वर्ष होती है। इस अवधि के बीतने के बाद कंपनी का एकाधिकार खत्म हो जाता है और तब कोई भी दवा कंपनी उस साल्ट या फॉर्मूले को अलग अलग नाम से मार्किट में बेचती है इन्ही दवाओं को जेनेरिक दवा कहा जाता है।
पेटेंट की अवधि बीतने के बाद दवा निर्माताओं को FDA उस ब्रांडेड दवा का जेनेरिक तैयार करने के लिए एक अप्रूवल लेना पड़ता है जिसमे उन्हें यह आश्वासन देना पड़ता है कि उनकी दवा वही सारे तत्व एकदम उसी मात्रा में हैं जो ब्रांडेड दवा में है। इसके साथ ही निर्माण विधि,डोज,शुद्धता,सुरक्षा तथा घुलनशीलता सारे पैरामीटर्स ब्रांडेड दवा के सामान होंगे। इसके साथ ही ट्रेड नेम,रंग,साइज़,पैकिंग सबका डिटेल देना पड़ता है। FDA से अनुमति मिलने के बाद कंपनियां अपने अलग अलग नामों से उस दवा को मार्किट में लाती हैं।
इस प्रकार हम देखते हैं कि जेनेरिक दवाएं मार्किट में बिना किसी पेटेंट के लायी जाती हैं। दवाओं के फार्मूलेशन का पेटेंट हो सकता है किन्तु उसमे जो सक्रीय तत्व होते हैं उनका कोई पेटेंट नहीं होता है। चुकि दवाएं FDA से अप्रूवड होती हैं तथा FDA इस बात का पूरा ख्याल रखता है कि ये गुणवत्ता,डोज,मात्रा हर तरीके से ब्रांडेड दवा के बराबर होती हैं तथा बाजार में उतरने के पहले इनको उन सारे परीक्षणों और मानकों पर खरा उतरना पड़ता है अतः इन्हे ब्रांडेड दवा की जगह बड़े आराम से दिया जा सकता है। और वे उतना ही असरकारी होती हैं जितना ब्रांडेड दवा।
दवा कम्पनियों को ब्रांडेड दवा से काफी मुनाफा होता है। कम्पनियां मेडिकल रिप्रेजेन्टेटिव के माध्यम से डॉक्टरों को अलग से लाभ उपलब्ध कराती है जिससे अधिकांश डॉक्टर ब्रांडेड दवा ही लिखते हैं। साथ ही दुकानदारों को भी इन दवाओं पर अच्छा मुनाफा होता है इसलिए वे ब्रांडेड दवा ही रखना चाहते हैं। इसके मुकाबले जेनेरिक दवाएं काफी सस्ती होती है। औसतन जेनेरिक दवाएं ब्रांडेड दवा की अपेक्षा पांच से छह गुने कम दामों पर उपलब्ध होती हैं। कई दवाएं तो 90 प्रतिशत तक सस्ती होती हैं।ब्लड कैंसर की दवा गलाईकेव ब्रांड के महीने भर का खर्च 1,14400 रुपये होता है जबकि इसी ग्रुप की जेनेरिक दवा विनेट मात्र 11400 रुपये में उपलब्ध है। सिप्रोफ्लोक्सासिन 500 mg के दस टेबलेट की कीमत जहाँ 97 रूपए आती है वहीँ जेनेरिक मात्र 21 रूपए पचास पैसे में उपलब्ध है। निमुसुलाइड 100 mg दस टेबलेट 38.66 रुपये में आती है जबकि 2.70 रुपये में इसका जेनेरिक उपलब्ध है जेनेरिक दवाओं के सस्ते होने के कई कारण हैं :
Generic Dawa Kyo Sasti Hoti Hai दवा कम्पनियों को ब्रांडेड दवा से काफी मुनाफा होता है। कम्पनियां मेडिकल रिप्रेजेन्टेटिव के माध्यम से डॉक्टरों को अलग से लाभ उपलब्ध कराती है जिससे अधिकांश डॉक्टर ब्रांडेड दवा ही लिखते हैं। साथ ही दुकानदारों को भी इन दवाओं पर अच्छा मुनाफा होता है इसलिए वे ब्रांडेड दवा ही रखना चाहते हैं। इसके मुकाबले जेनेरिक दवाएं काफी सस्ती होती है। औसतन जेनेरिक दवाएं ब्रांडेड दवा की अपेक्षा पांच से छह गुने कम दामों पर उपलब्ध होती हैं। कई दवाएं तो 90 प्रतिशत तक सस्ती होती हैं।ब्लड कैंसर की दवा गलाईकेव ब्रांड के महीने भर का खर्च 1,14400 रुपये होता है जबकि इसी ग्रुप की जेनेरिक दवा विनेट मात्र 11400 रुपये में उपलब्ध है। सिप्रोफ्लोक्सासिन 500 mg के दस टेबलेट की कीमत जहाँ 97 रूपए आती है वहीँ जेनेरिक मात्र 21 रूपए पचास पैसे में उपलब्ध है। निमुसुलाइड 100 mg दस टेबलेट 38.66 रुपये में आती है जबकि 2.70 रुपये में इसका जेनेरिक उपलब्ध है जेनेरिक दवाओं के सस्ते होने के कई कारण हैं :
Why Generic Medicinces Are Cheaper
- जेनेरिक दवाएं बनाने में केवल उनके निर्माण का खर्च आता है जबकि ब्रांडेड दवा में उसके रिसर्च,आविष्कार,विकास,परिक्षण,पेटेंट आदि के खर्च जुड़े होते हैं।
- जेनेरिक दवाएं कई निर्माताओं द्वारा बनाई जाती हैं जबकि ब्रांडेड दवा एक निर्माता द्वारा बनाई जाती है और पेटेंट अवधि तक निर्माण तथा मार्केटिंग में उसका एकाधिकार होता है।
- जेनेरिक दवाओं के प्रचार,प्रसार में कोई खर्च नहीं आता जबकि ब्रांडेड दवाओं के प्रचार,प्रसार आदि में बहुत खर्च होता है
- जेनेरिक दवाओं के मूल्य पर सरकार का नियंत्रण होता है जबकि पेटेंट दवाओं का मूल्य निर्धारण उन कंपनियों के द्वारा होता है।
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