Japani Encephalitis Ya Japani Bukhar Kya Hai, Bachne Ke Upay



जुलाई का महीना शुरू होते ही भारत में खासकर उत्तर भारत में कई बीमारीओं का प्रकोप चालू हो जाता है
इन बीमारियों में डेंगू,चिकेनगुनिया,जापानीज इंसेफ्लाइटिस आदि प्रमुख हैं। ये सारी बीमारियां काफी खतरनाक और जानलेवा हैं। अकेले जापानी इंसेफ्लाइटिस ने ही पुरे पूर्वी उत्तर प्रदेश में महामारी का रूप ले लिया है। इन महीनों में गोरखपुर और आसपास के सारे अस्पताल इस रोग के मरीजों से भरे रहते हैं। हर साल कई लोगों की खासकर बच्चों की मृत्यु भी हो जाती है। उत्तर प्रदेश के अलावे बिहार,झारखण्ड,उड़ीसा,पश्चिम बंगाल,असम,मेघालय,मणिपुर,कर्नाटक आँध्रप्रदेश,तमिलनाडु आदि राज्य भी इस बीमारी से प्रभावित हैं।
जापानी इंसेफ्लाइटिस का सबसे पहला केस 
दुनिया में जापानी एन्सेफलाइटिस का सबसे पहला केस जापान में सन 1871 में पाया गया। इसी कारण इसे जापानी एन्सेफलाइटिस या जापानी बुखार कहा जाता है। यह मुख्य रूप से चावल के खेतों में पनपने वाले मच्छरों  के जापानी एन्सेफलाइटिस वायरस जो एक फ्लेविवायरस होता है से संक्रमित होने से होता है। ये मच्छर जब पालतू सूअर और पक्षियों को काटते हैं तो ये वायरस उनके शरीर के रक्त में चले जाते हैं जहाँ वे परिवर्धित होते हैं। अब इन पक्षियों या सूअरों को फिर से मच्छर काटते हैं तो ये परिवर्धित वायरस उनके लार में चले जाते हैं। अब ये मच्छर किसी मनुष्य को काटते हैं तो उस व्यक्ति को इसका संक्रमण हो जाता है।
भारत में सर्वाधिक प्रभावित राज्य तथा जिले 
इस रोग से भारत समेत विश्व के कई देश प्रभावित हैं। भारत में सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य उत्तर प्रदेश है जहाँ इसके 39 जिलों में इस रोग की उपस्थिति दर्ज की जा चुकी है। सर्वाधिक प्रभावित जिलों में गोरखपुर,कुशी नगर,सिद्धार्थ नगर,महराजगंज,देवरिआ,संत कबीर नगर आते हैं। अकेले गोरखपुर में इन दिनों जापानी बुखार के मरीजों की बाढ़ आयी रहती है। भारत में सबसे पहला केस 1955 में तमिलनाडु में पाया गया था जबकि पूर्वी उत्तर प्रदेश में इसका पहला मामला 1978 में प्रकाश में आया जब 528 मरीजों की मृत्यु इसी बीमारी से हो गयी थी। सरकारी आकड़ों के अनुसार हर साल इस इलाके में पांच से छह सौ बच्चों की मृत्यु इस रोग से होती है। गैर सरकारी आंकड़ों के अनुसार 1978 से अब तक केवल पूर्वी उत्तर प्रदेश में इस बीमारी से 50,000 से भी ज्यादा लोगों की मृत्यु हो चुकी है। 
Image result for japanese encephalitis
जापानी इंसेफ्लाइटिस क्या है 
जापानी इंसेफ्लाइटिस एक प्रकार वायरस है जिसकी वजह से दिमाग में सूजन आ जाती है और मरीज को तेज  साथ झटके आने लगते हैं। इसे दिमागी बुखार या  मस्तिष्क ज्वर भी कहते है। यह एक फ्लाविवाइरस है जो उसी प्रजाति का होता है जिस प्रजाति के वायरस डेंगू, पीला बुखार और पश्चिमी नील वायरस के होते हैं। 
वर्ष के किन महीनो में इसका खतरा होता है 
भारत में दिमागी बुखार का प्रकोप जुलाई से नवंबर तक होता है। बरसात की वजह से जगह जगह पानी भरा होता है  से मच्छरों का प्रजनन इन दिनों  ज्यादा होता है। 

जापानी एन्सेफलाइटिस के लक्षण 

दिमागी बुखार में शरीर में ज्वर से लेकर सर में दर्द, गर्दन में अकड़न, झटके आदि आ सकते हैं। यह सबसे ज्यादा बच्चों पर असर डालता है। इसके मुख्य लक्षण इस प्रकार हैं :
  • तेज़ बुखार होना 
  • मिचली या उलटी होना 
  • तेज़ सरदर्द होना 
  • झटके आना 
  • तेज प्रकाश से घबराना (फोटोफोबिआ)
  • शरीर के जोड़ों में दर्द होना 
  • आँखों की गति अनियंत्रित होना, कभी एक ओर तो  कभी दूसरी ओर जाना 
  • गर्दन अकड़ना 
  • बोलने तथा अन्य शारीरिक गति में असमर्थता 
  • आंशिक या पूर्ण अंधता 
  • भ्रम की स्थिति होना 
  • शरीर के कुछ हिस्सों में संवेदना नहीं होना 
  • होश खो बैठना 
कई बार इस बीमारी में लकवे की भी संभावना होती है। कुछ केस में रोगी कोमा में चला जाता है। इस बीमारी के दूरगामी प्रभाव देखे जाते हैं। इसमें बच्चों में मस्तिष्क सम्बन्धी समस्याएं पैदा हो जाती है। उनके मस्तिष्क का विकास धीमी गति से होता है या रूक जाता है। इस बीमारी से ठीक हुए बच्चों के बौना होने की संभावना होती है। 

जापानी एन्सेफलाइटिस किस एज ग्रुप में ज्यादा होता है 

जापानी एन्सेफलाइटिस मुख्य रूप से चौदह वर्ष तक के बच्चों और 65 साल से ऊपर के लोगों को होता है। छोटे बच्चों में तो यह बहुतायत में पाया जाता है। 

जापानी एन्सेफलाइटिस के कारक/ वाहक 


जापानी एन्सेफलाइटिस के वायरस सूअर और जंगली पक्षियों  के शरीर में पोषित होते हैं। मच्छर इन सूअरों से मनुष्य में इस बीमारी का संचरण करते हैं। इसके विषाणु मनुष्य के रक्त में आते ही सबसे पहले उसके मस्तिष्क को प्रभावित करते हैं। यह छूने या साथ में रहने से नहीं फैलती है। इसके वायरस कुछ अन्य विषाणुओं की वजह से भी संचारित होते हैं जैसे रेबीज़ वायरस,हर्पीज सिंप्लेक्स,पोलियो वायरस,खसरे का वायरस,चेचक,सेंट लुइस वायरस, नील बुखार वायरस आदि।
Image result for japanese encephalitis

जापानी एन्सेफलाइटिस की जांच 

इस रोग के उपचार के लिए सबसे पहले इसकी जांच की जाती है। इसके लिए सेरेब्रोस्पाइनल फ्लूइड का नमूना जांच के लिए भेजा जाता है। संक्रमित व्यक्ति के सेरेब्रोस्पाइनल फ्लूइड में इस रोग के एंटीबॉडीज पाए जाते हैं। सेरेब्रोस्पाइनल फ्लूइड को रीढ़ की हड्डी में लम्बर पंक्चर करके निकला जाता है। 


जापानी एन्सेफलाइटिस का उपचार


हालाँकि जापानी एन्सेफलाइटिस का कोई इलाज नहीं है तो भी लक्षणों के आधार पर मेडिकल ट्रीटमेंट दिया जाता है। लक्षण दिखते ही मरीज को तुरंत किसी हॉस्पिटल में भर्ती कराया जाना चाहिए। इसमें मरीज को अस्पताल में 10 से 15 दिन तक रहना पड़ सकता है। इस दौरान मरीज को लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर रखा जाता  हैं जिसमे आवश्यकतानुसार ऑक्सीजन देना, लक्षणों से उबरने के लिए दवाएं देना, और ज्यादा नुकसान न हो इसका ख्याल रखें आदि शामिल हैं। 

जापानी एन्सेफलाइटिस से बचने का सबसे बेहतर तरीका है टीका लेना। बच्चों समेत सभी को इसका टीका लेना चाहिए। टीका लेने से शरीर में एंटीजेन उत्पन्न हो जाते हैं और इसका असर अप्रभावी हो जाता है। 

जापानी एन्सेफलाइटिस से बचाव 



  • जापानी एन्सेफलाइटिस से बचाव ही इसका सबसे बढियाँ इलाज है। इससे बचने के लिए हर वह काम करने चाहिए जिससे कि  मच्छर न  काटे।

  • हमेशा फुल स्लीव के कपडे पहने।

  • अपने रहने के स्थान पर साफ़ सफाई का विशेष ध्यान दें।


  • गंदे पानी के प्रयोग से बचे साथ ही खाने में भी ख़ास सफाई का ध्यान रक्खें। 

  • मच्छरदानी लगाकर ही सोएं
Image result for japanese encephalitis
  • खिड़कियों और दरवाजों पर जाली लगवाएं

  • मच्छर भगाने वाले coil  और लिक्विड का प्रयोग करें 

  • दिन में भी पूरी सावधानी बरतें 

  • आसपास कहीं भी जैसे कूलर,खाली टायर , बर्तन ,पुराने गमले ,गड्ढे आदि में पानी जमा न होने दें।

  • समय समय पर कीटनाशक का छिड़काव घर और गली मोहल्ले में करवाना चाहिए



  • यदि घर के आसपास पानी जमा भी होता है तो उसमे केरोसिन तेल डालें जिससे कि मच्छरों के अंडे नष्ट हो जायें।
  • आस पास के गड्ढे, पोखरों में कीटनाशक का छिड़काव होना चाहिए। 


  • सूअर पालन रिहाइशी क्षेत्रों से दूर करना चाहिए। 


  • सभी को खासकर बच्चों को जे ई के टिके लगवाने चाहिए। 
इस बीमारी की भयावहता और बाद के प्रभाव को देखते हुए इसका बचाव जहाँ तक हो सके करना चाहिए। सरकार को बचाव के उपाय तथा टीके पर विशेष जोर देना चाहिए। इसके साथ ही हम सब का कर्तव्य है कि अपने स्तर से वे सारे उपाय करने चाहिए जिससे कि यह बीमारी न फैले। 

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ