हमारा मस्तिष्क एक बहुत ही जटिल संरचना है। इसमें हर समय कई तरह की कॅल्क्युलेशन्स, इनपुट आउटपुट कमांड्स आदि के सिग्नल्स विद्युत् तरंगों के रूप में गतिमान होते रहते हैं। ये तरंगें तंत्रिकाओं न्यूरॉन्स के माध्यम से पूरे शरीर में प्रवाहित होती रहती हैं। इन्ही सिग्नल्स के द्वारा हमारा शरीर हरकत करता है और किसी काम को हम अंजाम देते हैं। हमारा देखना, सूंघना, सुनना, स्पर्श करके महसूस करना चलना फिरना आदि सारी क्रियाओं के कमांड्स हमारे दिमाग से मिलते हैं। इसके लिए इन अंगों के माध्यम से इनपुट सिग्नल्स विद्युत् तरंगों के माध्यम से दिमाग को भेजा जाता है जिसके फलस्वरूप दिमाग प्रतिक्रिया देता है और फिर विद्युत् तरंगों के माध्यम से उन्हें कमांड्स मिलते हैं। कभी कभी इन विद्युत् तरंगों के प्रवाह में ताल मेल के असंतुलन से शार्ट सर्किट जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है जिससे कि शरीर असामान्य हरकत करने लगता है और व्यक्ति को झटके आने लगते हैं दौरे पड़ने लगते हैं हाथ पैर अकड़ जाता है। इस तरह की स्थिति को सामान्य बोलचाल की भाषा में मिर्गी, अपस्मार, फरका या एपिलेप्सी कहा जाता है।
मिर्गी वास्तव में एक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर होता है जिसमे मरीज के मस्तिष्क में किसी भी वजह से बार बार दौरे पड़ते हैं। इस अवस्था में बेहोशी आना , गिर पड़ना , झटके आना, शरीर का लड़खड़ाना आदि लक्षण होने लगते हैं। मिर्गी वास्तव में किसी बीमारी का नाम नहीं है बल्कि कई बीमारियों में इसके दौरे आ सकते हैं।
मिर्गी एक बहुत ही आम बीमारी है। कई लोगों का मानना है कि यह एक आनुवंशिक बीमारी है पर यह पूरी तरह से सत्य नहीं है। सिर्फ एक प्रतिशत लोगों में ही यह रोग आनुवंशिक होता है। अन्य रोगियों में इसके होने की वजह दूसरी हो सकती है। पूरे विश्व में लगभग पांच करोड़ मिर्गी के रोगी हैं जबकि भारत में लगभग एक करोड़ लोगों में यह रोग पाया जाता है। पूरी दुनिया में आठ से दस प्रतिशत लोगों में अपने जीवन में कम से कम एक बार इसका दौरा पड़ने की संभावना रहती है। हर साल 17 नवम्बर को विश्व मिरगी दिवस का आयोजन किया जाता है जिसमे जागरूकता अभियान के साथ साथ उपचार कार्यक्रमों पर भी प्रकाश डाला जाता है।
मिरगी मानव सभ्यता की ज्ञात सबसे प्राचीनतम बीमारियों में से एक मानी जाती है। लिखित इतिहास में सर्व प्रथम इस रोग का उल्लेख प्राचीन मिस्र के पेपिरस पत्रों में मिलता है। प्राचीन भारत में चरक संहिता में भी अपस्मार का वर्णन एक रोग के रूप में मिलता है। ईसा पूर्व महान चिकित्सक हिप्पोक्रेटीज ने भी इसे एक रोग के रूप में इसका वर्णन किया है। इसके अलावा यूनानी पौराणिक कथाओं में डेल्फी के मंदिर में तथा ओल्ड तथा न्यू टेस्टामेंट में भी कई स्थानों पर इसका उल्लेख आता है। शेक्सपियर के नाटकों में भी इसका जिक्र हुआ है।
मिर्गी के कारण
मिर्गी रोग जैसा कि पहले बताया जा चूका है यह अपने आप में कोई बीमारी नहीं है पर किन्ही बीमारियों की वजह से इसके लक्षण उभरते हैं- किसी बीमारी या किसी और वजह से मस्तिष्क की कोशिकाओं का आंशिक रूप से या ज्यादा मात्रा में क्षतिग्रस्त होना एक महत्वपूर्ण कारण होता है इस रोग के लिए।
- कुछ केसेज में यह आनुवंशिक कारणों से भी होता है अर्थात माता या पिता या दोनों को या उनके पूर्वज में किसी को यह रोग हुआ हो तो आने वाली संतानों में इस रोग के पाए जाने की संभावना पायी जाती है।
- मस्तिष्क ज्वर और एन्सेफलाईट्स के रोगियों में भी यह रोग पाया जाता है।
- सूअर के पेट में पाए जाने वाले टेप वर्म भी इस रोग को जन्म देते हैं। सूअर के मल से ये वर्म मिटटी में तथा मिटटी से सब्ज़ी द्वारा मनुष्य की आंत में चले जाते हैं जहाँ से इसके सिस्ट मस्तिष्क में पहुंच कर उसे क्षतिग्रस्त कर देते हैं और इस रोग को उत्पन्न करते हैं।
- नशीले पदार्थ जैसे तम्बाकू शराब या नशीली दवाओं का अत्यधिक प्रयोग भी इस रोग को न्योता देते हैं। नशीले पदार्थों से मनुष्य का स्नायुतंत्र प्रभावित होता है और अंततः इस रोग का कारक बनता है।
- बिजली का झटका लगना, सर पर तेज चोट लगना भी इस रोग का कारण हो सकता है।
- मानसिक तनाव, लम्बे समय तक अनिद्रा आदि इसके अलावा कब्ज़, पेट में कीड़े होना मासिक धर्म का अनियमित होना
- ब्रेन ट्यूमर की वजह से भी इसकी संभावना हो जाती है।
- जन्म के समय मस्तिष्क में पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन का न पहुंचना।
- तंत्रिका सम्बन्धी रोग जैसे अल्जाइमर्स आदि की वजह से।
- कार्बन मोनो ऑक्साइड के आधिक्य वाले वातावरण में ज्यादा समय गुजारने से।
मिर्गी के प्रकार
मिर्गी दो प्रकार की होती है आंशिक और पूर्ण। आंशिक मिर्गी में मस्तिष्क का एक भाग प्रभावित होता है जबकि पूर्ण मिर्गी में मस्तिष्क का दोनों भाग प्रभावित होता है। इसी तरह दौरों के आधार पर इसे दो भागों में बांटा जाता है ग्रैंड मॉल और पेटिट मॉल
मिर्गी के लक्षण
शरीर में अकड़न और झटके के अलावा इसमें और भी लक्षण देखने को मिलते हैं जिनसे इसे आसानी से पहचाना जा सकता है
- दौरा पड़ने पर मरीज के कानो में तरह तरह की आवाजे सुनाई पड़ने लगती हैं और उसे लगता है कि उसकी त्वचा के नीचे बहुत सारे कीड़े रेंग रहे हैं। उसके त्वचा का रंग भी चेंज होने लगता है
- आँख की पुतलियां अस्थिर हो जाती हैं और लगातार इधर उधर घूमती हैं।
- सर में झटके आने लगते हैं या तो एक तरफ मरीज झुकने लगता है।
- हाथ पैर जबड़े आदि में खिचाव के साथ अकड़न होने लगती है।
- उपर और नीचे के दांत एक दूसरे पर बैठ जाते हैं जिससे कि जीभ कटने की स्थिति बन जाती है।
- उलटी या मुँह से झाग निकलने लगता है।
- मरीज एकदम बेचैन और थका हुआ महसूस होता है।
- कई बार मरीज आंशिक रूप से या पूर्ण रूप से बेहोश हो जाता है।
मिर्गी की जांच
लक्षणों के आधार पर मिर्गी की पहचान होने के बाद उसके उपचार की आवश्यकता होती है। इसके लिए इसकी चिकित्सीय जांच जरुरी होती है। इसकी जांच के लिए निम्न विधियां अपनायी जाती हैं :
- ब्रेन के C.T. Scan के द्वारा
- ब्रेन के M.R.I. द्वारा
- E.E.G. Electroencephalogram के द्वारा।
मिर्गी का उपचार
मिर्गी का उपचार संभव है। इसका लक्षण दीखते ही किसी विशेषज्ञ डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। कभी भी नीम हकीम या खुद का इलाज़ नहीं करना चाहिए। इस बीमारी में लम्बे इलाज़ की आवश्यकता पड़ती है। सामान्यतः मिर्गी के रोगी को तीन से पांच वर्ष तक दवा लेनी पड़ती है। दवा से लगभग सत्तर प्रतिशत रोगी एकदम ठीक हो जाते हैं। बाकी रोगियों के इलाज़ के लिए ऑपरेशन की आवश्यकता पड़ती है। इसका ऑपरेशन एक जटिल ऑपरेशन होता है। इसके लिए पहले मस्तिष्क का एम् आर आई करके यह सुनिश्चित किया जाता है कि मस्तिष्क के किस हिस्से में इसका प्रभाव है। आज कल आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की मदद से नयी तकनीक भी विकसित हो गयी है जिसमे गामा नाइफ रेडियो सर्जरी जिसमे लैज़र किरणों के द्वारा ऑपरेशन किया जाता है। इसमें चीड़ फाड़ नहीं करनी पड़ती है। मिर्गी के दौरे के समय क्या करें
- मिर्गी का दौरा आने पर मरीज को साफ़ और मुलायम बिस्तर पर एकदम ढीला छोड़ देना चाहिए। सर के नीचे एक तकिया लगाकर लार या झाग एक रुमाल से पोछ देना चाहिए।
- दौरे के समय मरीज के आस पास भीड़ नहीं लगानी चाहिए। उसे खुला वातावरण देना चाहिए जिससे की उसे पर्याप्त मात्रा में हवा मिलती रहे।
- दौरे के समय न तो हाथ पाँव दबाना चाहिए और न मालिश करनी चाहिए।
- मरीज के दांतों में यदि जीभ फंसी हो तो उसे अंदर कर देना चाहिए नहीं तो कटने का डर रहता है।
- दौरा कुछ सेकंड या कुछ मिनटों का होता है उसके बाद मरीज एकदम सामान्य हो जाता है। अतः सामान्य होने की प्रतीक्षा करनी चाहिए।
- इसके अलावा कोई काम नहीं करना चाहिए। कुछ लोग मरीज को जूता सुंघाते हैं या चाभी पकड़ाते हैं। ये सब कत्तई नहीं करना चाहिए। इससे मरीज को लाभ के बजाय नुक्सान हो सकता है।
मिर्गी रोग में सावधानियां
मिर्गी का रोगी एकदम सामान्य व्यक्ति होता है। अतः उससे कोई भेदभाव नहीं करना चाहिए। फिर भी मिर्गी के रोगी को कुछ सावधानियां बरतनी चाहिए।
- मिर्गी के रोगी को भूखे पेट नहीं रहना चाहिए। अतः उन्हें व्रत उपवास नहीं रखना चाहिए।उन्हें सामान्य भोजन लेना चाहिए।
- मृगी का रोगी सामान्य व्यक्ति की तरह ही शादी कर सकता है और बच्चे पैदा कर सकता है। कोई जरुरी नहीं कि उसके बच्चे भी इस बीमारी से ग्रसित हों।
- गर्भवती महिलाओं को गर्भावस्था में दौरे को रोकने के लिए गोलियां नियमित रूप से लेते रहना चाहिए प्रायः इन गोलियों का कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं होता है।
- मिर्गी के रोगी को कभी भी अकेला नहीं छोड़ना चाहिए।
- इस तरह के रोगी को दौरा कहीं भी पड़ सकता है अतः उसे गाड़ी या कोई मशीन नहीं चलाना चाहिए।
- इस तरह के व्यक्ति को पानी, लाल रंग, तेज रौशनी आदि से दूर रखना चाहिए।
- दौरे पड़ने पर चोट लगने की संभावना होती है अतः साथ वाले व्यक्ति को इसका ध्यान रखना चाहिए। स्थिति सामान्य होने पर प्राथमिक चिकित्सा के लिए डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।
- मिर्गी के रोगी को हर समय अपनी जेब में एक पर्ची रखनी चाहिए जिसमे उसका नाम पता मोबाइल नंबर इत्यादि की जानकारियां होनी चाहिए।
मिर्गी: मिथ और सचाई
- मिर्गी के रोगी पागल होते हैं :
- ज्यादा दिमागी काम करने से या दिमाग पर जोर देने से मिर्गी हो जाता है:
- मिर्गी के रोगी शादी नहीं कर सकते और यदि करते हैं तो उनके बच्चे को भी मिर्गी होगी:
- मिर्गी के रोगी को जूता सुंघाना चाहिए या उनके हाथ में चाभी का गुच्छा देना चाहिए
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