हमारे समाज में हिस्टीरिया के रोगी को प्रायः हेय दृष्टि से देखा जाता है और इसके रोगी और उसके परिवार वालों को शर्मिंदगी का सामना करना पड़ता है। इसका कारण यह है कि यह माना जाता है कि स्त्रियों में तीव्र यौन इच्छा को दबाने से इस रोग की उत्पत्ति होती है परन्तु यह पूर्ण सत्य नहीं है। यह रोग का एक कारण हो सकता है पर सम्पूर्ण कारण नहीं। कई बार कई अन्य मानसिक तनाव या सदमे की वजह से भी इस रोग की उत्पति होती है। मन में कोई इच्छा दबाना, कोई शिकायत या दुःख जिसे रोगी न तो किसी से कह सकता है और न उसे दूर कर सकता है और अंदर ही अंदर कुढ़ता रहता है। चाहे वह पति पत्नी के बीच का सामंजस्य न होना या माँ बाप भाई बहन के बीच की कोई बात हो। समाज के भय से न तो वह पति से या अपने परिवार वालों से छुटकारा ले सकती है न सामंजस्य बना सकती है और न ही बदला ले सकती है। अब यह मानसिक तनाव या गुस्सा अंदर ही अंदर स्त्री को नुकसान करता रहता है और ऐसी स्त्री धीरे धीरे हिस्टीरिया की शिकार हो सकती है। कई बार इस तनाव की वजह से या कई अन्य कारणों से उसे पूर्ण यौन संतुष्टि नहीं मिल पाती और उसे अपना जीवन निराशा से भरा हुआ लगने लगता है।
हिस्टीरिया के रोगी के लक्षण
हिस्टीरिया के रोगी को तरह तरह के दौरे पड़ते हैं कभी कभी बेहोशी भी आ जाती है पर मुख्य रूप से जो लक्षण दिखाई पड़ते हैं वे ये हैं
- हाथ पैरों का कांपना , झटके आना और ऐठन होना।
- मुँह से आवाज का निकलना बंद होना दांत भींचना। कई बार रोगी फुसफुसा कर बाते करता है।
- कई बार रोगी को थोड़ी देर तक दिखाई या सुनाई पड़ना बंद हो जाता है।
- रोगी बिना बात के हंसने लगता है कभी बड़बड़ाने लगता है तो कभी रोने लगता है कभी चिल्लाने लगना
- शरीर का कोई भी हिस्सा अस्थाई रूप से बिलकुल सुन्न हो जाता है।
- रोगी कई बार अर्ध मूर्छा में हो जाता है। शरीर एकदम ढीला पड़ जाता है।
- बेहोशी समाप्त होने पर रोगी को खुल कर पेशाब होता है।
- शुरू शुरू में रोगी को सीने में दर्द, जम्भाई, बेचैनी पेट में गैस का गोला बनने की शिकायत मिलती है।
- गले में लगता है कुछ फंस गया है। लगता है गला सुख गया है।
- रौशनी की ओर देखने से परेशानी होना।
- जी मिचलाना, बेहोशी आना।
- हाथ पैरों में अकड़न होना,झटके आना और ऐठन आना।
हिस्टीरिया के रोगी को इन लक्षणों के आधार पर पहचाना जा सकता है। कई बार दिन में दस दस दौरे पड़ते हैं तो कई बार महीने दो महीने में एक बार। कई बार अलग अलग दौरों में अलग अलग लक्षण दिखाई पड़ते हैं।
हिस्टीरिया रोग के कारण
- हिस्टीरिया रोग कई कारणों से होता है। अकसर यह किसी बड़े सदमे या तनाव की वजह से होता है जहाँ स्त्री अपनी व्यथा अपने आप तक सीमित रखती है किसी से अपने दुःख की चर्चा तक नहीं कर पाती । मानसिक तनाव के साथ ही हिस्टीरिया की और भी कई वजह हो सकती है।
- गहरा मानसिक सदमा, अत्यधिक मानसिक तनाव,चिंता होना।
- किसी भी वजह से यौन उत्तेजना बढ़ जाना या यौन संतुष्टि न मिलना। अधिक उम्र तक विवाह न होना या वैधत्व या लम्बे समय तक पति से दूरी होना।
- कई बार जरायु में कुछ गड़बड़ी होने से या यूटेरस या डिंबकोष में दिक्कत आने से भी यह रोग हो जाता है।
- स्नायु मंडल के संचालन में रुकावट आने से भी इस रोग की संभावना होती है।
- पीरियड का अनियमित होना ज्यादा होना, होने के समय अत्यधिक दर्द होना , यूटेरस के अंदर सूजन होना।
- पेट में बहुत ज्यादा गैस होना और उस गैस को रोके रहना इसके साथ ही कब्ज़ होना भी इसके कारक होते हैं।
हिस्टीरिया और मिर्गी में क्या अंतर है
हिस्टीरिया के लक्षणों को देखकर कई बार लोग ग़लतफ़हमी में पड़ जाते हैं और इसे मिर्गी समझ बैठते हैं। आईये देखते हैं दोनों के लक्षणों में क्या अंतर है
- मिर्गी ग्रीक शब्द एपिलंबनीन से उत्पन्न हुआ है जिसका अर्थ हमला करने के लिए या जब्त करना होता है जबकि हिस्टीरिया शब्द की उत्पत्ति ग्रीक शब्द हीसरस से हुई है जो गर्भाशय को दर्शाता है।
- मिर्गी मस्तिष्क में न्यूरॉन्स के अत्यधिक सक्रिय या असंतुलित होने की वजह से होता है जबकि हिस्टीरिया ज्यादातर मानसिक भय, तनाव या यौन उन्माद को जब्त करने से होता है।
- मिर्गी का दौरा एकदम से अचानक आता है अतः रोगी कहीं पर भी चाहे घर पर हो, बाज़ार में हो ट्रैन या बस में हो, गिर पड़ता है जबकि हिस्टीरिया का दौरा शुरू होने के पहले मरीज को आभास हो जाता है अतः वह सुरक्षित स्थान पर लेट जाता है। इसी वजह से हिस्टीरिया के मरीज का जीभ या होठ उसके दांतों से कटते नहीं हैं।
- मिर्गी ज्यादातर बच्चों को या किसी को भी हो सकती है जबकि हिस्टीरिया अधिकांशतः महिलाओं को होती है।
हिस्टीरिया का दौरा आने पर क्या करें
- हिस्टीरिया का दौरा आने पर रोगी को किसी हवादार कमरे में किसी बिछावन पर लिटा देना चाहिए। साथ ही उसके कपडे ढीले कर देने चाहिए।
- रोगी के हरकतों पर नज़र रखनी चाहिए और ध्यान देना चाहिए की वह अपना या किसी का नुकसान न कर पावे।
- रोगी के हाथ और पैर के तलवों की हलकी मालिश करनी चाहिए। चेहरे पर पानी के हलके छींटे मारने चाहिए।
- रोगी से ज्यादा बात नहीं करनी चाहिए।
उपचार
बीमारी का पता लगते ही किसी अच्छे चिकित्सक से इसका इलाज़ करवाना चाहिए। कोई शारीरिक परेशानी न हो तो किसी अच्छे मनोचिकित्सक से संपर्क करना चाहिए। किसी भी स्थिति में झाड़ फूक, दुआ ताबीज़ या नीम हाकिम से संपर्क नहीं करना चाहिए। रोगी से प्यार से बर्ताव करना चाहिए और कोशिश करनी चाहिए कि वह अपनी हर बात पर चर्चा करे।
बीमारी का पता लगते ही किसी अच्छे चिकित्सक से इसका इलाज़ करवाना चाहिए। कोई शारीरिक परेशानी न हो तो किसी अच्छे मनोचिकित्सक से संपर्क करना चाहिए। किसी भी स्थिति में झाड़ फूक, दुआ ताबीज़ या नीम हाकिम से संपर्क नहीं करना चाहिए। रोगी से प्यार से बर्ताव करना चाहिए और कोशिश करनी चाहिए कि वह अपनी हर बात पर चर्चा करे।
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