Kachhua Fir Jeet Gaya


कछुआ फिर जीत गया   




जब से रोहित को सामान्य ज्ञान की जिला स्तरीय प्रतियोगिता में प्रथम स्थान पाने की सूचना मिली थी तब से उसके पांव जमीन पर नहीं पड़ रहे थे। वह काफी खुश था। वह कभी नाच रहा था तो कभी जोर जोर से गाने लगता था। पूरा घर खुश था। अभी कुछ ही दिनों पहले उसके शहर में किसी संस्था द्वारा प्रतिभा खोज कार्यक्रम के तहत जिला स्तरीय सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता का आयोजन कराया गया था। शहर के सभी स्कूलों के बच्चों ने इसमें हिस्सा लिया था। आज ही उसका परिणाम घोषित हुआ था और सभी को मैसेज के द्वारा रिजल्ट बताया गया था।

Kachhua Fir Jeet Gaya

रोहित शुरू से ही पढ़ने में काफी होशियार था। उसके यार दोस्त, मोहल्ले वाले और स्कुल वाले उसकी प्रतिभा के कायल थे। वह शहर के एक अच्छे से स्कूल में पढता था। उसके माता पिता की स्थिति बहुत ही अच्छी थी। उसे किसी बात की कमी नहीं थी। वह खूब परिश्रम से पढ़ाई करता।
सामान्य ज्ञान की प्रतियोगिता में प्रथम आने की खबर अखबार में भी छपी थी।  रोहित अब जहाँ भी जाता लोग उसके चर्चे करते। चारों तरफ अपनी प्रशंशा सुन कर रोहित को भी बहुत अच्छा लगता। धीरे धीरे रोहित को इसकी आदत सी पड़ गयी थी और वह उसमे आनंद लेने लगा था। कहते हैं किसी भी चीज़ की अधिकता नुकसानदायक होती है। यही बात रोहित के साथ भी हुई। गर्व कब अभिमान में बदल जाता है पता नहीं चलता। रोहित के साथ भी यही हुआ। उसे अब अपनी प्रतिभा पर अभिमान होने लगा था। उसे लगता था कि पुरे जिले में उस जैसा कोई नहीं है। इसी तरह कॉन्फिडेंस कब ओवर कॉन्फिडेंस में बदल जाता है इसका भी पता मनुष्य को नहीं चलता। रोहित को सारी पुस्तके एकदम आसान लगती थीं। उसे लगता था जैसे उसे सब आता हो। एक रात को रोहित को नींद नहीं आ रही थी। वह उठ कर छत पर टहलने लगा। टहलते टहलते उसकी नज़र उसके घर के पास ही रहने वाले सूरज के घर पर पड़ी। लाइट कटी हुई थी। उसके घर तो इन्वर्टर से रौशनी थी किन्तु सूरज के घर लगता था ढिबरी टिमटिमा रही थी। तभी उसकी नज़र सूरज पर पड़ी वह उस ढिबरी में पढ़ रहा था। रोहित मन ही मन हँस पड़ा। बड़ा पढ़ाकू बन रहा है। वह नीचे आ गया और थोड़ी देर में सो गया। धीरे धीरे इस बात को काफी समय हो गए। रोहित के हाई स्कूल की परीक्षाएं नज़दीक आ रही थीं। हाई स्कूल के सारे छात्र परीक्षाओं की तैयारी में लग गए थे। रोहित ने भी अपने सारे सिलेबस को पढ़ डाला था। उसे अब लगता था जैसे उसे सब कुछ याद हो गया है बस परीक्षाओं के दौरान थोड़ा रिवीजन करलेंगे तो हो जायेगा। इसी लिए वह निश्चिन्त हो गया था। आराम से सोता और खूब घूमता था वह। कई बार तो वह स्कूल भी नहीं जाता। उसे लगता टीचर वही सारी घिसी पीटी चीज़ों को पढ़ाएंगे। इसी बीच शहर में कुम्भ मेला लगा। रोहित बड़ा ही खुश था। वह पहले ही दिन मेला घूम आया। मेला पुरे एक महीने के लिए लगा था। रोहित हर दूसरे तीसरे दिन मेला चला जाता, मौज मस्ती करता खरीदारी करता। उसके मम्मी पापा कई बार टोकते बेटा पढाई कर लो एग्जाम नज़दीक हैं। वह हँस कर कहता पापा आप चिंता न करें मैंने सब पढ़ लिया है। थोड़ा बहुत है वह भी केवल दुहरा लूंगा तो हो जायेगा। रोहित जब भी घूमने निकलता उसे सूरज नहीं दिखाई पड़ता। जब कई बार ऐसा हो गया तो उसकी उत्सुकता बढ़ने लगी। एक दिन वह चुपके से सूरज के घर में झाँका, वह देखा सूरज पढ़ रहा है। वह मन ही मन सोचा बड़ा पढ़ रहे हैं बच्चू। अब वह जब भी निकलता तो एक बार उसके घर में झांक लेता। उसे सूरज पढता हुआ दिखाई पड़ता। रोहित सोचता कमजोर बच्चों को मेहनत करनी ही पड़ती है। फिर भी मेरे मुकाबले आने के लिए बहुत समय लगेगा। 

Kachhua Fir Jeet Gaya

धीरे धीरे मेले का समय ख़त्म हो गया और परीक्षाएं चालू हो गयीं। सभी बच्चे परीक्षा देने लगे। परीक्षाओं के बाद रिजल्ट का समय आया। सभी बड़ी ही उत्सुकता से रिजल्ट की प्रतीक्षा कर रहे थे। रिजल्ट निकला रोहित प्रथम आया था। वह ख़ुशी ख़ुशी घर आ रहा था तभी एक जगह भीड़ देखकर रुक गया। आगे जाकर देखा तो अचरज से उसकी आँखें फटी रह गयीं। सभी लोग सूरज को घेर कर खड़े थे। सूरज को माला पहनाया गया था। कुछ पत्रकार उससे माइक में इंटरव्यू ले रहे थे सामने टीवी कैमरा लगा हुआ था। तब उसे पता चला सूरज न केवल अपने जिले में बल्कि पुरे प्रदेश में सर्वोच्च अंक प्राप्त करके टॉप किया है। उसने अपने मार्क्सशीट को देखा उसे लगा आज फिर कछुआ खरगोश से जीत गया है। उसे समझ आ रहा था गर्व और अभिमान में क्या अंतर है तथा आत्मविश्वास और अति आत्मविश्वास में क्या फर्क है। 

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2 टिप्पणियाँ

Akhilesh ने कहा…
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Jyoti Dehliwal ने कहा…
शिक्षाप्रद कहानी।