सरिता स्टेशन पर बैठ कर ट्रैन की प्रतीक्षा कर रही थी। ट्रैन करीब दो घंटे लेट थी। सरिता को गुस्सा आ रहा था। वह कभी उठती चहल कदमी करती और फिर बैठ जाती। ऐसा मेरे साथ ही क्यों होता है अकसर ? जब भी मुझे कही ट्रैन से जाना होता है तो ट्रैन लेट हो जाती है। आपसे मै बोली थी कि आराम से चलते हैं पर आप कहाँ मानने वाले हैं। अब झेलो। सौरभ खुद परेशान था उस पर उसकी पत्नी सरिता बोले जा रही थी। एक एक पल मानो एक एक युग के बराबर हो रहा था। अन्य दूसरी ट्रेनें आ कर चली जा रहीं थी। सरिता के सब्र का बाँध टूट रहा था। आखिर करीब तीन घंटों की प्रतीक्षा के बाद ट्रैन आयी। ट्रैन आयी तो जरूर पर वह खचाखच भरी हुई थी। किसी तरह से सौरभ और सरिता अंदर घुस पाए। शरीर से शरीर छील रहा था। बैठना तो दूर खड़े रहने में भी दिक्कत हो रही थी। सरिता और सौरभ किसी तरह जहाँ बन पड़ा मूर्तिवत खड़े हो गए। धीरे धीरे उनका स्टेशन आ गया था। ज्योंहि गाड़ी स्टेशन पर रुकी उतरने और चढ़ने वालों में संघर्ष होने लगा। न उतरने वालों में धैर्य था और न हीं चढ़ने वालों में सब्र। खैर किसी तरह सरिता और सौरभ उतरें। दोनों प्लेटफार्म से बाहर निकले। काफी इंतज़ार और इधर उधर दौड़ने के बाद उन्हें अपने मोहल्ले में जाने के लिए एक रिक्शा मिला। एक तो चिलचिलाती धुप दूसरे पसीने ने दोनों को बदहाल कर दिया था। सरिता मन ही मन सोच रही थी घर पहुंचते ही सबसे पहले कूलर के सामने लेटूंगी फिर स्नान करुँगी उसके बाद ही कोई काम करुँगी। रिक्शा धीरे धीरे उनके घर के सामने आ के रुक गया। सौरभ ने जल्दी से पैसे दिए और दोनों घर के अंदर गए। घर में घुसते ही सरिता ने देखा लाइट कटी हुई है। उसने जाकर फ्रीज़ खोला और पानी निकाला, पानी गर्म था। इसका मतलब है लाइट काफी देर से कटी हुई है। तब तो पानी भी नहीं आएगा। भगवान् यह सब मेरे साथ ही क्यों होता है ? सारी मुसीबतें तुम मेरे लिए हीं क्यों लाते हो । सरिता को बहुत क्रोध आ रहा था। आखिर वह किचन में गयी और खाने का प्रबंध करने लगी। खाना बनाते बनाते वह सोच रही थी भगवान मेरे पीछे हाथ धो कर पड़े हुए हैं मेरा कोई भी काम आसानी से नहीं होता और यदि कोई काम सोच लिया तो वह तो कत्तई नहीं होगा। आखिर कब तक मै किस्मत से लड़ सकती हूँ ? सहने की भी एक सीमा होती है। तभी उसके नाक में कुछ जलने की बू आयी। अरे अरे यह तो रोटी जल रही है। हाँ हाँ मै जानती हूँ मेरा कुछ भी अच्छा नहीं होने वाला। यही बाकी रह गया था। सरिता गुस्से से फट पड़ी। किसी तरह से वह खाना बनाकर लाई। दोनों ने मिलकर खाया। अभी वे खाकर उठे ही थे तभी लाइट आ गयी। आओ अब तो आओगे ही काम हो गया तो आओगे ही। वह लाइट को कोस रही थी। खाना खा कर दोनों सो गए। थके तो थे ही, दोनों शाम तक सोते रहे। शाम को सरिता की नींद खुली तभी उसे कुछ याद आया अरे कितने बज गए ? पानी तो चला गया होगा। वह दौड़ कर पानी का मोटर चलायी। पानी सचमुच चला गया था। सरिता फिर अपनी किस्मत को कोसने लगी। टंकी में थोड़ा पानी रह गया था।
सरिता छत पर से ही अपनी पड़ोसन अलका को देख रही थी। अलका उसे देख कर मुस्कुरा रही थी। उसने इशारों में पूछा कब आयी? सरिता ने बताया आज ही दोपहर को। अलका नीचे चली गयी थी। इस परेशानी के दौर में भी लोग न जाने कैसे मुस्कुरा लेते हैं। सरिता ने सोचा। जरूर दिखावा करती होगी। ना ना वह वास्तव में खुश रहती है। उसका काम कोई रुके तब ना। अभी पिछले ही महीने में देख लो उसके बच्चे का बर्थडे था। उस रोज़ सारा दिन लाइट कटी थी और जैसे ही शाम हुई बर्थडे का टाइम हुआ न जाने कहाँ से लाइट आ गयी। किस्मत इसको न कहते हैं। उसी रोज़ देख लो उसको हॉस्पिटल जाना था और शहर में रिक्शा टेम्पो की हड़ताल थी। वह बाहर सड़क पर थी तभी न जाने कहाँ से वह पुलिस वाला मिल गया उसने अपनी गाडी में ले जाकर पति पत्नी को हॉस्पिटल छोड़ा। छोड़ा भी और लाकर पहुंचाया भी। किस्मत का धनी इसी को कहते हैं। एक हम लोग हैं बनता काम भी बिगड़ जाता है।
सरिता छत पर से ही अपनी पड़ोसन अलका को देख रही थी। अलका उसे देख कर मुस्कुरा रही थी। उसने इशारों में पूछा कब आयी? सरिता ने बताया आज ही दोपहर को। अलका नीचे चली गयी थी। इस परेशानी के दौर में भी लोग न जाने कैसे मुस्कुरा लेते हैं। सरिता ने सोचा। जरूर दिखावा करती होगी। ना ना वह वास्तव में खुश रहती है। उसका काम कोई रुके तब ना। अभी पिछले ही महीने में देख लो उसके बच्चे का बर्थडे था। उस रोज़ सारा दिन लाइट कटी थी और जैसे ही शाम हुई बर्थडे का टाइम हुआ न जाने कहाँ से लाइट आ गयी। किस्मत इसको न कहते हैं। उसी रोज़ देख लो उसको हॉस्पिटल जाना था और शहर में रिक्शा टेम्पो की हड़ताल थी। वह बाहर सड़क पर थी तभी न जाने कहाँ से वह पुलिस वाला मिल गया उसने अपनी गाडी में ले जाकर पति पत्नी को हॉस्पिटल छोड़ा। छोड़ा भी और लाकर पहुंचाया भी। किस्मत का धनी इसी को कहते हैं। एक हम लोग हैं बनता काम भी बिगड़ जाता है।
सरिता घर के खर्चों में हाथ बंटाने के लिए कुछ करना चाहती थी। उसके दिमाग में कई आईडिया आ रहे थे। काफी सोच विचार कर वह ब्यूटी पार्लर खोलने के बारे में सोची। सारा प्लान सोच कर वह काम स्टार्ट करने की सोची। अचानक उसके दिमाग में आया। ब्यूटी पार्लर में खर्चा तो बहुत लग रहा है पता नहीं चलेगा नहीं चलेगा । ऐसा तो नहीं कि पैसे ही डूब जाये। वैसे भी अपनी किस्मत अच्छी नहीं रहती। जो भी जमा पूँजी हाथ में है पता चले कि खर्च हो गए। सरिता का मन आगे पीछे होने लगा। इसी उधेड़ बुन में दो तीन महीने निकल गए। इसी बीच मोहल्ले में दो चार दूसरे ब्यूटी पार्लर खुल गए। उनमे भीड़ देख सरिता पछताती सोचती मुझसे गलती हो गयी।
सरिता के साथ ऐसा अक्सर होता था। उसे लगता था जैसे उसके नसीब में परेशानियां ही परेशानियां लिखी हैं। वह हमेशा खिन्न रहती थी। एक दिन उसके मोहल्ले में एक महात्मा आये। सब लोग उनसे मिलकर अपनी परेशानी बता रहे थे। सरिता तो पहले से ही परेशान थी सो वह भी वहां पहुंची। सरिता ने वहां अलका को भी देखा। वह सोचने लगी इसको क्या परेशानी है जो यह यहाँ पहुंची है ? इसकी किस्मत तो हमेशा इसका साथ देती है। सरिता ने वहां देखा वहां बड़ी भीड़ थी। वहां एक से एक पैसे वाले अच्छे खासे नौकरी वाले सब पहुंचे हुए हैं। सरिता का दिमाग काम नहीं कर रहा था। वह जिनको जिनको बहुत सुखी और किस्मत का धनी समझती थी सब के सब वहां पहुंचे हुए थे। सरिता ने मन ही मन सोचा बड़े लालची लोग हैं ये इनको क्या कमी है ? इनकी जगह मै होती तो यहाँ कत्तई न आती। इतना सबकुछ होने के बाद भी इनको चाहिए। सरिता उन सबों को महात्मा से बाते करते हुए सुन रही थी। वहां सब परेशान दीख रहे थे। सब अपने अपने नसीब को कोस रहे थे। सरिता को लगा उससे ज्यादा तो वे लोग परेशान है। वह सोचने लगी तब ये हमेशा मुस्कुराते हुए और हँसते हुए क्यों दीखते हैं ? सरिता का दिमाग खुल रहा था। उसे अब समझ आ रहा था कि इस दुनिया में परेशान अकेली वही नहीं है और जिस जिस बात के लिए वह किस्मत को कोस रही थी वह एकदम आम है और लगभग सबके साथ होता है। इसी बीच सरिता का नंबर आ गया। वह उठ कर बाबा के पास गयी उनको नमस्ते कर उनके पास बैठ गयी। बाबा ने उसकी सारी बाते सुनी। उन्होंने उसे थोड़ा भस्म दिया और कहा जाओ सब ठीक हो जाएगा। सरिता घर पंहुची और जा कर सो गयी। करीब एक घंटे के बाद फोन की घंटी बजने से उसकी नींद खुली। सौरभ का फोन था। बड़ा परेशान था। उसने बताया अभी अभी बस में चढ़ते वक्त उसका पर्स गिर गया है। बहुत ढूढ़ा पर मिल नहीं रहा है। सरिता का मन भारी हो गया। वह परेशान हो गयी। घर में ही वह चलकदमी करने लगी। उसे समझ ही नहीं आ रहा था क्या करे। करीब एक घंटे के बाद उसे लगा कोई कॉलबेल बजा रहा है। उसने देखा कोई उसके दरवाजे पर खड़ा है। उसने उससे पुछा किससे मिलना है ? उस आदमी ने बताया सौरभ जी का घर यही है ना। वह बोली हाँ। उस आदमी ने तुरत एक पर्स निकाला। अरे यह तो सौरभ का पर्स है। उस आदमी ने बताया जी हाँ यह पर्स उसे रस्ते में मिला है। इसमें कुछ रुपये हैं और क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड और आधार कार्ड पड़े हुए थे। उसी आधार कार्ड पर दिए गए एड्रेस से मै यहां पंहुचा हूँ। आप लीजिए और अपने पैसे मिला लीजिए। सरिता बहुत ही खुश हुई। उसने तुरत सौरभ को फोन मिलाया और उसे बताया। सौरभ भी परेशान था वह अपना पर्स इधर उधर ढूढ़ रहा था। सरिता ने उस आदमी का धन्यवाद दिया और उसे अंदर ले गयी। आपको चाय तो पी कर ही जाना होगा। बैठिए सौरभ भी आ रहे हैं। सरिता मन ही मन सोच रही थी यह सब महात्मा जी के आशीर्वाद का असर है। पलक झपकते ही अपना असर दिखाना शुरू कर दिया। बातों बातों में उसने उस व्यक्ति को महात्मा जी के बारे में बताया और बोला देखिए उनके दर्शन मात्र से ही मेरे काम बनने लगे। वह आदमी हंसने लगा। आप ऐसा मानती हैं ठीक है किन्तु यह सब जीवन में होता रहता है। उसने बताया कि महात्मा जी के दर्शन करने वह भी गया था। और यदि उनकी वजह से आपके पति का पर्स मिला है तो उनकी वजह से पर्स गायब ही नहीं होना चाहिए था। उसने कहा आपने देखा महात्मा जी के पास कोई ऐसा इंसान जो दुखी न हो, सबकी परेशानियां कमोवेश एक सामान थी। यह तो नेचुरल है जब आप कोई काम शुरू करेंगी तो परेशानियां आएँगी ही और जब परेशानियां आएँगी तभी उसका हल भी निकलेगा। सरिता को उसकी बाते सत्य मालूम पड़ रही थी। रही ट्रैन लेट होने की बात तो ट्रेन लगभग रोज ही लेट होती है और हर व्यक्ति को लगता है जैसे जिस दिन वह जाता है उसी दिन ट्रेन लेट होती है। सरिता का मन काफी हल्का हो गया था। उसे लगा इस व्यक्ति ने दस मिनट में ही उसकी सोच को बदल दिया है। अब तक सौरभ आ गए थे। जैसे ही सौरभ घर में प्रवेश किया लाइट चली गयी। सरिता हँस पड़ी और उठकर झट से मोमबत्ती जला दिया। घर फिर से प्रकाशित हो गया।
सरिता के साथ ऐसा अक्सर होता था। उसे लगता था जैसे उसके नसीब में परेशानियां ही परेशानियां लिखी हैं। वह हमेशा खिन्न रहती थी। एक दिन उसके मोहल्ले में एक महात्मा आये। सब लोग उनसे मिलकर अपनी परेशानी बता रहे थे। सरिता तो पहले से ही परेशान थी सो वह भी वहां पहुंची। सरिता ने वहां अलका को भी देखा। वह सोचने लगी इसको क्या परेशानी है जो यह यहाँ पहुंची है ? इसकी किस्मत तो हमेशा इसका साथ देती है। सरिता ने वहां देखा वहां बड़ी भीड़ थी। वहां एक से एक पैसे वाले अच्छे खासे नौकरी वाले सब पहुंचे हुए हैं। सरिता का दिमाग काम नहीं कर रहा था। वह जिनको जिनको बहुत सुखी और किस्मत का धनी समझती थी सब के सब वहां पहुंचे हुए थे। सरिता ने मन ही मन सोचा बड़े लालची लोग हैं ये इनको क्या कमी है ? इनकी जगह मै होती तो यहाँ कत्तई न आती। इतना सबकुछ होने के बाद भी इनको चाहिए। सरिता उन सबों को महात्मा से बाते करते हुए सुन रही थी। वहां सब परेशान दीख रहे थे। सब अपने अपने नसीब को कोस रहे थे। सरिता को लगा उससे ज्यादा तो वे लोग परेशान है। वह सोचने लगी तब ये हमेशा मुस्कुराते हुए और हँसते हुए क्यों दीखते हैं ? सरिता का दिमाग खुल रहा था। उसे अब समझ आ रहा था कि इस दुनिया में परेशान अकेली वही नहीं है और जिस जिस बात के लिए वह किस्मत को कोस रही थी वह एकदम आम है और लगभग सबके साथ होता है। इसी बीच सरिता का नंबर आ गया। वह उठ कर बाबा के पास गयी उनको नमस्ते कर उनके पास बैठ गयी। बाबा ने उसकी सारी बाते सुनी। उन्होंने उसे थोड़ा भस्म दिया और कहा जाओ सब ठीक हो जाएगा। सरिता घर पंहुची और जा कर सो गयी। करीब एक घंटे के बाद फोन की घंटी बजने से उसकी नींद खुली। सौरभ का फोन था। बड़ा परेशान था। उसने बताया अभी अभी बस में चढ़ते वक्त उसका पर्स गिर गया है। बहुत ढूढ़ा पर मिल नहीं रहा है। सरिता का मन भारी हो गया। वह परेशान हो गयी। घर में ही वह चलकदमी करने लगी। उसे समझ ही नहीं आ रहा था क्या करे। करीब एक घंटे के बाद उसे लगा कोई कॉलबेल बजा रहा है। उसने देखा कोई उसके दरवाजे पर खड़ा है। उसने उससे पुछा किससे मिलना है ? उस आदमी ने बताया सौरभ जी का घर यही है ना। वह बोली हाँ। उस आदमी ने तुरत एक पर्स निकाला। अरे यह तो सौरभ का पर्स है। उस आदमी ने बताया जी हाँ यह पर्स उसे रस्ते में मिला है। इसमें कुछ रुपये हैं और क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड और आधार कार्ड पड़े हुए थे। उसी आधार कार्ड पर दिए गए एड्रेस से मै यहां पंहुचा हूँ। आप लीजिए और अपने पैसे मिला लीजिए। सरिता बहुत ही खुश हुई। उसने तुरत सौरभ को फोन मिलाया और उसे बताया। सौरभ भी परेशान था वह अपना पर्स इधर उधर ढूढ़ रहा था। सरिता ने उस आदमी का धन्यवाद दिया और उसे अंदर ले गयी। आपको चाय तो पी कर ही जाना होगा। बैठिए सौरभ भी आ रहे हैं। सरिता मन ही मन सोच रही थी यह सब महात्मा जी के आशीर्वाद का असर है। पलक झपकते ही अपना असर दिखाना शुरू कर दिया। बातों बातों में उसने उस व्यक्ति को महात्मा जी के बारे में बताया और बोला देखिए उनके दर्शन मात्र से ही मेरे काम बनने लगे। वह आदमी हंसने लगा। आप ऐसा मानती हैं ठीक है किन्तु यह सब जीवन में होता रहता है। उसने बताया कि महात्मा जी के दर्शन करने वह भी गया था। और यदि उनकी वजह से आपके पति का पर्स मिला है तो उनकी वजह से पर्स गायब ही नहीं होना चाहिए था। उसने कहा आपने देखा महात्मा जी के पास कोई ऐसा इंसान जो दुखी न हो, सबकी परेशानियां कमोवेश एक सामान थी। यह तो नेचुरल है जब आप कोई काम शुरू करेंगी तो परेशानियां आएँगी ही और जब परेशानियां आएँगी तभी उसका हल भी निकलेगा। सरिता को उसकी बाते सत्य मालूम पड़ रही थी। रही ट्रैन लेट होने की बात तो ट्रेन लगभग रोज ही लेट होती है और हर व्यक्ति को लगता है जैसे जिस दिन वह जाता है उसी दिन ट्रेन लेट होती है। सरिता का मन काफी हल्का हो गया था। उसे लगा इस व्यक्ति ने दस मिनट में ही उसकी सोच को बदल दिया है। अब तक सौरभ आ गए थे। जैसे ही सौरभ घर में प्रवेश किया लाइट चली गयी। सरिता हँस पड़ी और उठकर झट से मोमबत्ती जला दिया। घर फिर से प्रकाशित हो गया।
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