जब भी सबसे गंभीर बीमारियों का जिक्र आता है तो ब्रेन स्ट्रोक का भी उसमे नाम आता है। इसकी गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है पुरे विश्व में हर तीन मिनट में स्ट्रोक के एक रोगी की मौत होती है और हार्ट अटैक और कैंसर के बाद पुरे विश्व में मृत्यु का तीसरा सबसे बड़ा कारण स्ट्रोक को माना जाता है। विश्व में हर 45 सेकंड में किसी न किसी को स्ट्रोक के हमले का सामना करना पड़ता है। इसका अटैक इतना तगड़ा होता है कि अगर मौत नहीं भी हुई तो व्यक्ति स्थाई रूप से विकलांग हो जाता है।
वर्ल्ड कांग्रेस हैदराबाद की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में हर साल 18 लाख लोग स्ट्रोक के शिकार होते हैं और इनमे से 18 से 32 प्रतिशत मामले 60 वर्ष से कम के लोगों के होते हैं जबकि 10 से 15 प्रतिशत मामले 40 वर्ष से कम उम्र के व्यक्तियों के होते हैं। स्ट्रोक के सारे मामलों में 22-40 प्रतिशत में मुख्य कारण ह्यपरटेंसन या हाई ब्लड प्रेशर होता है। ब्रेन स्ट्रोक क्या है ?
ब्रेन स्ट्रोक के लक्षण
ब्रेन स्ट्रोक की दशा में मरीज में बहुत सारे शारीरिक बदलाव देखे जा सकते हैं जिनके आधार पर तय किया जा सकता है कि मरीज को ब्रेन स्ट्रोक हुआ है
- अचानक तेज सरदर्द शुरू होना,
- उलटी महसूस होना
- चक्कर आना इसके साथ ही शरीर का संतुलन खो देना।
- एक आँख से या कभी कभी दोनों आँखों से अचानक दिखना बंद हो जाना कई बार एक ही चीज़ दो दो दिखाई पड़ना।
- चेहरे, हाथों में और पैरों में अचानक कमजोरी होना , चेहरे की मांसपेशियों के कमजोर होने से मुंह से लार बहने लगती है तथा मरीज को बोलने में दिक्कत होती है।
- शरीर के एक हिस्से में सुन्नता अनुभव होना
- कुछ बोलने या समझने में कठिनाई होना,
- भ्रम की स्थिति उत्पन्न होना।
- मूत्राशय पर नियंत्रण न होना
- दोनों हाथों को उठाने पर एक हाथ का अचानक से गिर जाना।
ब्रेन स्ट्रोक किनको हो सकता है
यूँ तो स्ट्रोक किसी को भी हो सकता है पर कुछ शारीरिक स्थितियां ऐसी होती हैं जिनमे इस रोग के होने की संभावना बहुत ज्यादा बढ़ जाती हैं।
- ह्रदय रोग से ग्रसित व्यक्तियों को ब्रेन स्ट्रोक का खतरा ज्यादा बना होता है।
- अधिक उम्र वाले लोगों में भी इसकी संभावना पायी जाती है।
- धूम्रपान करने वालों में
- डाइबिटीज के रोगियों में
- हाई कोलेस्ट्रॉल वाले लोगों में
- हाई ब्लड प्रेशर के मरीजों में
- ऐसे लोगों में जिनके परिवार में ब्रेन स्ट्रोक के केस हो चुके हों
- ज्यादा जंक फ़ूड का सेवन करने वालों तथा मोटे लोगों में
- आरामतालाब जीवन शैली
- मानसिक तनाव से ग्रस्त लोगों में
ब्रेन स्ट्रोक की जांच
ब्रेन स्ट्रोक के लक्षण दीखते ही बिना देरी किये मरीज को किसी अच्छे न्यूरोलॉजिस्ट के पास ले जाना चाहिए। अस्पताल में डॉक्टर विभिन्न जांच करके स्ट्रोक और स्ट्रोक के प्रकार और उसकी तीव्रता को कन्फर्म करते हैं ताकि उसी के आधार पर आगे की चिकित्सा की जाय। ब्रेन स्ट्रोक की जांच कई तरह से की जाती है
शारीरिक जांच : यह प्राथमिक जांच है। इसमें सबसे पहले मरीज का ब्लड प्रेशर देखा जाता है। इसके बाद डॉक्टर मरीज के गले में स्थित कैरोटिड आर्टरीज और आँख के पीछे की रक्त वाहिकाओं की जांच करके रक्त के थक्का बनने का पता लगाते हैं।
ब्लड टेस्ट : इस तरह के मरीजों का ब्लड टेस्ट करके रक्त जमने की गति और संक्रमण का पता लगाया जाता है। इस टेस्ट में डॉक्टर यह भी पता करते हैं कि किस परिमाण में रक्त में थक्का बन रहा है।
सीटी स्कैन : स्ट्रोक वाले मरीजों के सर का सीटी स्कैन करके ब्लॉकेज या अन्य समस्याओं जिसकी वजह से स्ट्रोक हुआ है उसका पता लगाया जाता है।
एमआरआई जांच : यह काफी उच्च स्तर की जांच है। इसमें मरीज के दिमाग में ब्लॉकेज और उसके द्वारा क्षतिग्रस्त कोशिकाओं की मात्रा और लोकेशन का पता किया जाता है।
इसके अलावा कैरोटिड अल्ट्रासाउंड आदि द्वारा मरीज की कैरोटिड आर्टरीज में रक्त प्रवाह की स्थिति, थक्के की मात्रा या तीव्रता आदि का पता किया जाता है।
ब्रेन स्ट्रोक कितने प्रकार का होता है
ब्रेन स्ट्रोक तीन तरह का होता है
अल्पकालिक इस्कीमिक स्ट्रोक : इस तरह के स्ट्रोक में मष्तिष्क में खून का थक्का कुछ समय के लिए खून के प्रवाह को रोक देता है। इसे मिनी स्ट्रोक भी कहा जाता है।
इस्कीमिक स्ट्रोक : इस तरह के स्ट्रोक में मष्तिष्क को ब्लड सप्लाई बुरी तरह से प्रभावित होती है। इसमें ब्लड वेसल के अंदर वसा के जमाव की वजह से ब्लड सप्लाई कम होने लगती है या रुक जाती है। इसमें ऐथेरोस्क्लेरोसिस के कारण रक्त में थक्का बनने लगता है और खून का प्रवाह रुक जाता है। इस तरह का स्ट्रोक बहुत ही खतरनाक होता है और स्ट्रोक के अधिकांश मामले इसी प्रकार के होते हैं।
रक्तस्रावी स्ट्रोक : कई बार मष्तिष्क में ब्लड वेसल्स के टूटने की वजह से रक्तस्राव होने लगता है। और इसतरह ब्लड सप्लाई प्रभावित होती है।
ब्रेन स्ट्रोक के कारण
स्ट्रोक के कई कारण हो सकते हैं
- मष्तिष्क की कोशिकाओं में किसी प्रकार से ब्लड की सप्लाई का नहीं पंहुचना स्ट्रोक का मुख्या कारण होता है। इसकी वजह से मष्तिष्क की कोशिकाएं नष्ट होने लगती हैं और उनकी कार्य प्रणाली रूक जाती है।
- ऐथेरोस्क्लेरोसिस की वजह से रक्त में थक्का जमने लगता है और ब्लड फ्लो प्रभावित होने लगता है।
- ब्लड वेसल्स में अंदर की तरफ वसा का जमाव होने से भी रक्त प्रवाह में प्रॉब्लम आती है और मष्तिष्क को खून की आपूर्ति रूक जाती है।
- ब्लड वेसल्स की दीवारों का किसी वजह से टूटना या क्षतिग्रस्त होना। हाई ब्लड प्रेशर और ब्लड वेसल की दीवारों पर हलके या कमजोर स्पॉट्स का होना स्ट्रोक का कारण हो सकता है।
ब्रेन स्ट्रोक का उपचार
स्ट्रोक आने के बाद मरीज के लिए हर सेकंड काफी महत्वपूर्ण होता है। अतः बिना देर किये मरीज को किसी अच्छे न्यूरोलॉजिस्ट के पास ले जाना चाहिए। इसमें स्ट्रोक आने के शुरू के तीन घंटे काफी महत्वपूर्ण होते हैं जिन्हे विंडो पीरियड भी कहा जाता है।
स्ट्रोक के मरीजों की दवा करने से पहले चिकित्सक इस बात का पता लगाते हैं कि स्ट्रोक किस प्रकार का है और किस परिमाण में है। इसके बाद ही वे मरीज की चिकित्सा शुरू करते हैं।
स्ट्रोक के उपचार के लिए शुरू के कुछ घंटों में एक दवा दी जाती है जिसका नाम टीपीए या टिश्यू प्लासमिनोजेन एक्टिवेटर है। इसके अलावा एस्प्रिन आदि देकर खून को पतला करने का प्रयास किया जाता है जिससे थक्का घुल जाये।
रक्तस्रावी स्ट्रोक में मरीज को वार्फरिन या क्लोपिडोग्रेल नामक एन्टीकोगुलेट और एंटीपलेट्लेट दवाएं दी जाती हैं। ये दवाएं रक्तस्राव को कम करने में मदद करती हैं। इस तरह के स्ट्रोक में ऑपरेशन की आवश्यकता पड़ती है। इस तरह के स्ट्रोक में उच्च रक्तदाब को कम करने के लिए नाइट्रोग्लिसरीन का पेस्ट भी दिया जाता है।
इनके अलावा आजकल नयी इंडोवैस्कुलर तकनीक द्वारा भी स्ट्रोक का इलाज हो रहा है जो काफी कारगर साबित हो रहा है।
ब्रेन स्ट्रोक से कैसे बचे
ब्रेन स्ट्रोक हालाँकि किसी को कभी भी हो सकता है फिर भी अपनी जीवन शैली में कुछ सुधर लाकर इसके खतरे को काफी कम किया जा सकता है
- ब्रेन स्ट्रोक का मुख्य कारण हाई ब्लड प्रेशर है अतः हमें कोशिश करनी चाहिए कि हमारा ब्लड प्रेशर सामान्य रहे। उच्च रक्तदाब के रोगियों को हमेशा अपने ब्लड प्रेशर की जांच कराते रहना चाहिए।
- वसा तथा कोलेस्ट्रॉल वाले भोजन से परहेज करना चाहिए।
- धूम्रपान और शराब से बचना चाहिए
- डायबिटीज के रोगियों को अपने शुगर लेवल की बराबर जांच कराते रहना चाहिए और इसे नियंत्रण में रखने की कोशिश करनी चाहिए।
- संतुलित और पोषक आहार लेना चाहिए
- टहलना और व्यायाम को अपने जीवन शैली का हिस्सा बनाना चाहिए।
- मोटापा से बचें
- मानसिक तनाव से बचें
- कुछ गर्भ निरोधक गोलियों का सेवन भी नुकसानदायक हो सकता है अतः इससे बचें
- भोजन में नमक, चीनी और वसा की मात्रा कम रखें।
- पर्याप्त मात्रा में नींद लें।