कानून के हाथ


कानून के हाथ : एक लघुकथा 


वह बड़ी देर से टुकुर टुकुर गोपाल हलवाई को जलेबी छानते हुए देख रहा था।  जलेबी निकलती नहीं कि ग्राहक लपक लेते। कई लोग तो  अपना नंबर आने का इंतज़ार कर रहे थे। गरमा गरम जलेबियों की गंध उसके नथने घुस रही थी।  तीन दिनों से कुछ भी खाने को नहीं मिला था। वह बड़ी ही बेसब्री से किसी के द्वारा जूठन फेके जाने का इंतज़ार कर रहा था। किसी प्लेट में एक टुकड़ा तो किसी प्लेट में केवल रस ही मिल पाता। वह बारी बारी से हर प्लेट को चेक करता, सूंघता , चाटता और फिर फेक देता। कभी कोई टुकड़ा मिल जाता तो मानो उसकी किस्मत ही जग गयी। लेकिन उसको भी वहां खड़े कुत्तों से बड़ी ही होशियारी से बचाना पड़ता। गोपाल हलवाई एक ग्राहक को ढेर सारी जलेबी तौल के दे रहा था तभी अचानक जलेबी रखने वाला कागज़ का थैला उसके हाथ से छूट गया और नीचे गिर के फट गया।  जूठन की बाट  जोहता जब उसकी निगाहें उसपर पड़ी तो उसने आव न देखा ताव , तुरत कागज़ सहित जलेबी उठाया और भाग चला।  कुत्ते भी उसके पीछे दौड़े। जलेबियों का मालिक भी उसके पीछे दौड़ा , उसे दौड़ते देख कुछ अन्य लोग भी दौड़ने लगे। 
कानून के हाथ

सब चोर चोर चिल्ला रहे थे। तभी सामने आती मोटर साइकिल से टकराकर वह गिर पड़ा , उसके हाथों से जलेबियों का वह कागज़ का थैला भी गिर पड़ा।  लोग पकड़ कर उसे मारने लगे। तभी एक पुलिस वाला भी वह आ गया और उसने उसे पकड़ते हुए कहा कानून के हाथ बहुत लम्बे होते हैं बच्चू। पुलिस वाले ने उसे पीटते हुए पूछा तुमने क्या चुराया है। इस पर उसने जलेबियों का वह पेपर का थैला उनके सामने कर दिया। थैला पूरी तरह से फट चूका था जलेबियाँ  भागा दौड़ी में गिर चुकी थी बस पेपर के टुकड़े पर जलेबी का रस लगा हुआ था जिसमे से कुछ अक्षर झाँक रहे थे "देश का नौ हज़ार करोड़ लेकर  विजय माल्या फरार।" लड़का डर से थर थर काँप रहा था और उसके चेहरे पर अपराध बोध नज़र आ रहा था और वहीँ पुलिस वाले का सीना चौड़ा और चेहरे पर कर्तव्यनिष्ठा के भाव झलक रहे थे।