गाँधी जी भले ही राष्ट्र के पिता माने जाते हैं लेकिन वे अपने बड़े पुत्र हरी लाल के लिए एक अच्छे पिता कभी नहीं बन सके। गाँधी जी ने एक जगह इस बात को स्वीकारा है कि वे अपने पुरे जीवन में दो व्यक्तियों को संतुष्ट नहीं कर पाए एक मोहम्मद अली जिन्नाह थे जिन्होंने अलग देश के लिए भारत के बटवारे की मांग की और दूसरे उनके अपने बड़े पुत्र जिन्होंने कभी उनके रास्तों को नहीं अपनाया। उनके पुरे जीवन की सबसे बड़ी असफलताओं में से एक उनके पुत्र हरी लाल का उनसे संतुष्ट न होना है। एक समाज सुधारक, एक महान व्यक्तित्व की महानता की कीमत अक्सर उनके परिवार के सदस्यों को चुकानी पड़ती है। शायद इसी को दीपक तले अँधेरा कहते हैं।
महात्मा गाँधी जिन्हे सारा संसार बापू के नाम से जानता है वे अपने बड़े पुत्र हरी के दिल में शायद वह स्थान नहीं पा सके। हरी के अनुसार
गाँधी : एक राष्ट्रपिता बनाम एक पिता
"He is the greatest father you can have but he is the one father I wish I did not have"
हरी के लिए महात्मा गाँधी के उपदेश और शिक्षाएँ बेमतलब की चीज़ें थी या यूँ कहे थोपी गयी चीज़े थी। यही कारण था महात्मा गाँधी से उनके रिश्ते अच्छे नहीं थे और कई बार झगड़े होते रहते थे। हरी लाल अपनी खुद की लाइफ जीना चाहता था जबकि गाँधी चाहते थे उनके पुत्र उनकी राह पर चलें। गाँधी जी सत्य,अहिंसा और सख्त अनुशासन की राह पर चलने वाले व्यक्ति थे वे जीवन के सत्य को अपने अनुभवों और प्रयोगों से जानना चाहते थे पर हरी लाल के लिए गाँधी जी के आदर्श एक भ्रम और काल्पनिक ज्ञान था। हरी लाल ने हरमन कॉलेनबाश को लिखा भी था कि उनके पिता देश सेवा और समाज सेवा करते हुए भूल चुके हैं कि उनका खुद का भी एक परिवार है।
महात्मा गाँधी और हरी लाल के रिश्तों के कितनी कड़ुवाहट आ चुकी थी इस अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि हरी लाल महात्मा गाँधी के हर कदम का विरोध करते थे। गाँधी के सिद्धांतों के उलट हरी लाल खूब शराब पीते थे। जहाँ महात्मा गाँधी विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार करते थे वहीँ हरी लाल उनका व्यापार करता था। उसकी शराब की लत ने गाँधी को इतना दुखी कर दिया था कि एक बार उन्होंने कहा कि ऐसे शराबी पुत्र की अपेक्षा वे अपने पुत्र की मृत्यु देखना पसंद करेंगे। पिता पुत्र के संबंधों इतनी तल्खियां बढ़ गयी थी कि दोनों में बातचीत तक बंद हो गयी और फिर हरी लाल ने अपने परिवार से हर तरह के सम्बन्ध तोड़ लिए। बाद के कई वर्षों तक स्थितियां वैसी ही बनी रही। फिर 1935 में गाँधी ने हरी लाल पर अपनी ही पुत्री से बलात्कार करने का आरोप लगाया। बाद में पता चला हरी लाल ने अपनी पुत्री नहीं अपनी बहु से बलात्कार किया था। बाद के वर्षों में हरी लाल ने इस्लाम धर्म कबूल कर लिया था और अपना नाम अब्दुल्लाह रखा इसके साथ है वह सार्वजनिक रूप से गाँधी जी की निंदा भी किया करता था। । बाद में गाँधी जी ने अपने पुत्र हरी लाल से हर तरह का सम्बन्ध तोड़ लिया था और उसे त्याग दिया। उन्होंने अपने परिवार के अन्य सदस्यों को भी उससे सम्बन्ध रखने को मना कर दिया था। एक बार उनके छोटे पुत्र ने हरी लाल को कुछ पैसे दिए तो गाँधी जी ने उससे भी सम्बन्ध तोड़ लिया। शराब तथा अन्य व्यसन ने हरी लाल की हालत बेहद ख़राब कर दी थी। उसका स्वास्थ्य गिर गया था। गाँधी जी की हत्या के बाद उनके दाह संस्कार पर जब हरी लाल आया तो परिवार के कोई सदस्य उसको पहचान नहीं पाए।
हरी लाल केवल छह माह के थे जब गाँधी जी 1888 ईस्वी अपने परिवार को साउथ अफ्रीका में छोड़ कर इंग्लैंड चले गए थे। पर उन्हें जल्दी ही एहसास हुआ कि उनके पुत्रों को परिवार को उनकी जरुरत ज्यादा है तो वापस लौट आये। बचपन में हरी लाल अपने पिता की वजह से काफी अच्छी आरामदायक जिंदगी बसर कर रहा था पर जब 1906 में गाँधी जी ने ब्रह्मचर्य और सामान्य जीवन जीने की प्रतिज्ञा ली तो हरी लाल को काफी धक्का लगा। इसके साथ ही एक बार गाँधी जी के एक मित्र ने उन्हें अपने एक पुत्र को इंग्लैंड भेजने के लिए स्कालरशिप की पेशकश की तो गाँधी जी ने पूछा क्या यह स्कालरशिप उनके पुत्र के लिए है या उनके लिए वास्तव में जो इसके योग्य हैं। उनके मित्र ने बताया कि यह स्कालरशिप उसके लिए है जो इसकी योग्यता रखता हो। इस पर गाँधी जी ने कहा उनके पुत्र की जगह दो दूसरे लड़कों को इंग्लैंड जाने के लिए छात्रवृति दी जाये। इस बात पर उनके घर में काफी तकरार हुई। उनकी पत्नी ने कहा आप हमारे बच्चों को मनुष्य बनाने से पहले ही संत बनाना चाहते हैं। हरी लाल अपने पिता की तरह इंग्लैंड जाकर बैरिस्टर बनना चाहता था किन्तु गाँधी जी चाहते थे कि उनके पुत्र भारतीय मूल्यों वाले स्कूल में पढ़े। उनका मानना था कि यूरोप से मिली शिक्षा ब्रिटिश राज से आज़ादी के लिए संघर्ष में मददगार नहीं साबित होगी । लगभग इसी समय हरी लाल शराब पीना शुरू कर दिया और अपने पिता के सिद्धांतों के विरुद्ध विदेशी कपड़ों का व्यापार करने लगा। इन्ही दिनों हरी लाल की पत्नी की मृत्यु हो गयी और हरी लाल ने दुबारा शादी करने का निर्णय लिया। गाँधी जी यह नहीं चाहते थे। गाँधी जी वह यह कैसे स्वीकार कर सकते हैं जिसका वे विरोध करते हैं। उनका मानना था सेक्स त्याग की चीज़ है।
गाँधी का राजनितिक दर्शन समाज कल्याण के लिए प्रत्येक व्यक्ति के त्याग के विश्वास पर आधारित था। वे जिन चीज़ों को समाज में देखना और लाना चाहते थे उन चीज़ों को पहले खुद और अपने परिवार में लाते और करते थे। आम भारतीय जिन चीज़ों से वंचित है उन चीज़ों का वे खुद भी त्याग करना चाहते थे। किन्तु त्याग और बलिदान के लिए आप अपने को मना सकते हैं तैयार कर सकते हैं दूसरों को नहीं यहाँ तक कि अपने परिवार के सदस्यों से भी नहीं। उन्हें आप समझा सकते हैं पर जबरदस्ती अपनी बात थोप नहीं सकते। हर व्यक्ति का अपना व्यक्तित्व होता है अपनी सोच होती है तर्क वितर्क करने की क्षमता होती है अपना विश्वास होता है। शायद महात्मा गाँधी इस बात को समझ नहीं सके।
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